11 अगस्त, 2019 को एक घटना हुई. जिसमें एक बच्चे की बहादुरी ने लोगों की जान बचाई. बाढ़ से पुल पानी में डूब गया था रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. बच्चे ने हौसला दिखाया और गाड़ी निकलवा दी. इस घटना के बारे में वेंकटेश (बच्चा) कहते हैं, ” मैं इस पुल से कई बार गुज़रा था और मुझे रास्ते की जानकारी थी मुझे सिर्फ इस बात का ख्याल रखना था कि मैं एंबुलेंस के ज्यादा नज़दीक न रहूँ ताकि गलती से अगर इसका बैलेंस बिगड़ा तो मुझे परेशानी हो सकती थी.”
दरअसल कर्नाटक के रायचुर जिले के हीरेरायाकुंपी गाँव में रहने वाले वेंकटेश ने तब चैन की सांस ली जब उन्होंने पुल के दूसरे छोर में गाड़ी को पार लगा दिया. एंबुलेंस गाड़ी को सुरक्षित तरीके से पार करने के बाद ही वेंकटेश को चैन आया. एंबुलेंस में एक शव के साथ मृत व्यक्ति के रिश्तेदार और 6 बच्चे बैठे थे.
इस बहादुरी वाले काम की वीडियो वायरल हो गई और कुछ दिनों के बाद कई मीडिया चैनलों पर वेंकटेश को हीरो बन गए. इसके बाद 26 जनवरी, 2020 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नई दिल्ली में वेंकटेश को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया. IAS ऑफिसर पी. मणिवनन, जो श्रम विभाग के सेक्रेटरी हैं उन्होंने वेकंटेश को वीरता पुरस्कार के लिए नोमिनेट किया उन्होंने लिखा.
“मुझे लगता है कि इस छोटे से छात्र को वीरता के लिए प्रोत्साहन मिले और इसलिए मैं वीरता पुरस्कार के लिए इसकी सिफारिश कर रहा हूँ. मुझे उम्मीद है कि मेरी सिफारिश पर गंभीरता से निर्णय होगा.” हालाँकि वेंकटेश ने इस घटना का जिक्र अपने माता-पिता से नहीं किया. टीवी पर जब ये खबर दिखी तब उसके माता-पिता को इस बारे में पता लगा.
वहीं वेंकटेश के पिता देवेंद्र कहते हैं, “वेंकटेश अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था क्यूंकि गाँव में आई बाढ़ और लगातार बारिश के कारण स्कूल बंद था. उसने अपनी माँ से कहा था कि वह अपना ख्याल रखेगा और आसपास ही रहेगा ये उसकी नादानी थी क्यूंकि कोई भी दुर्घटना घट सकती थी. सुरक्षा सबसे जरूरी चीज़ है और उसने जो किया वह बाकी बच्चों के लिए एक गलत उदाहरण साबित हो सकता है.”
12-year old brave boy from Raichur in Karnataka, Venkatesh helped an ambulance driver cross a bridge submerged in water by guiding him to the safe main road. #KarnatakaFloods pic.twitter.com/nlZvdlmZGl
— Vibhinna Ideas (@Vibhinnaideas) August 16, 2019
दरअसल जब लोगों को घर से बाहर तक निकलने के लिए मना था और उस वक्त वेंकटेश ने बाहर जाकर मुसीबत उठाई तो उनके माता-पिता को घबराहट हुई और उन्हें ये बात पसंद नहीं आई. लेकिन कुछ ही दिनों में वे भी अपने बेटे के काम की तारीफ करने लगे. वहीं वेंकटेश को वीरता पुरस्कार मिलने पर वह कहते हैं, “हम इस बात पर गर्व महसूस कर रहें हैं कि वेंकटेश ने किसी अनजान की मदद करने से पहले एक बार भी नहीं सोचा. आजकल ऐसी बातें कम ही देखने को मिल पाती हैं जब कोई जोखिम उठा कर निस्वार्थ भाव से किसी की सहायता करे.”