आईपीएस मनोज शर्मा वो नाम है जिनकी सफलता के चर्चे रोज सोशल मीडिया पर कोई न कोई शेयर करता ही रहता है. उनकी कहानी रोचक तथा अनोखी होने के साथ साथ प्रेरणादायक भी है. शायद यही कारण रहा है कि उनकी लाइफ पर आधारित ‘ट्वेल्थ फेल’ के नाम से एक बुक भी लिखी जा चुकी है. बुक आने के पश्चात उनकी इस संघर्ष से भरी कहानी को और भी पाॅपुलेरिटी मिली. आज सिविल सेवा में जाने की तैयारी कर रहा प्रत्येक छात्र इन्हें जानता है और उनसे प्रेरित होता है. 12वीं में फेल हुआ ये लड़का आज आइपीएस अधिकारी है. मनोज शर्मा आज महाराष्ट्र कैडर में हैं और अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
यूँ तो सिविल सेवा में जाने का सपना लगभग हर टॉपर के मन में होता है लेकिन इसकी कठोर परीक्षा के आगे कभी-कभी टॉपर्स भी नहीं टिक पाते. परंतु मनोज शर्मा की स्टोरी के चर्चे इसलिए होते रहते हैं क्योंकि कि उन्होंने 12वीं में फेल होने के बावजूद भी इस परीक्षा को न केवल देने का मन बनाया, बल्कि कामयाबी भी प्राप्त की. बता दें मनोज मूल रूप से मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के रहने वाले हैं। वह देहाती माहौल में सरकारी स्कूल में पढ़े लिखे हैं. वहां की शिक्षा का लेवल ऐसा था कि हाई स्कूल और इंटर की परीक्षा को नकल के भरोसे ही देखा जाता था. पढाई सिर्फ नाम मात्र की होती थी.
बता दें स्कूल में कोई खास पढ़ाई होती नहीं थी मास्टर जी खुद नकल कराते थे ताकि अपनी न पढ़ाने की कमियों को छिपा सके और स्कूल का रिजल्ट अच्छा बना सके. मनोज ने जैसे तैसे 10वीं और 11वीं को पास किया और 12वीं में आ गए. 12वीं की परीक्षा देने के लिए भी वे और उनके सारे दोस्त नकल के ही भरोसे ही गए थे मगर इस बार मामला उल्टा पड़ गया. क्योंकि नकल के कारण पूरे जिले में बदनाम उनके स्कूल की इस करतूत की खबर इस बार एसडीएम को लग गई थी और वे खुद उनके स्कूल में आए और सामने परीक्षा करवाई, जब तक परीक्षा खत्म नहीं हुई वहीं रहे. उनके होने की वजह से स्कूल में इस बार नकल नहीं हो पाई और पूरा स्कूल ही फेल हो गया था जिसमें मनोज शर्मा भी फेल हो गए थे.
ये सब होने के बाद उन्होंने अपने भाई के साथ ऑटो चलाया. उनके भाई के ऑटो को एक दिन पुलिस ने पकड़ लिया जिसे छुड़ाने वो थाने गए और डीआईजी के रोब को देखकर ही उन्होंने वहीं तय कर लिया कि अब यही नौकरी करनी है. घर में पैसे की दिक्कत थी, घर में खाना न होने का वक्त भी देखा, फिर उन्हें लाइब्रेरियन कम चपरासी का काम मिला, उन्होंने कवियों या विद्वानों की सभाओं में बिस्तर बिछाने से लेकर पानी पिलाने तक का काम किया. कुछ पैसा जुटा तो लग और तैयारी शुरू की. उन्हें एसडीएम ही बनना था मगर तैयारी धीरे-धीरे वह इससे भी बड़ी पोस्ट की भी करने लगे थे.
इसके बाद वह कॉलेज पहुंचे और वहां भी टॉप कर के दिखाया. लेकिन दिक्कतें अभी भी ख़त्म नहीं हुई थीं. वह ग्वालियर शहर यूपीएससी की तैयारी करने निकल गए. वह बताते हैं कि आर्थिक दिक्कत काफी थी. सड़क पर ही सोना पड़ता था. लोग खाना दे दें इसलिए वह भिखारियों के साथ ही सो जाते थे. आर्थिक दिक्कतों के चलते कभी कभी उन्होंने ऑटो तक चलाया. बाद में से यहां लाइब्रेरी में काम मिल गया था कुछ रुपए आने लगे थे. कुछ दिक्कतें कम होने लगी. मनोज को तीन बार एग्जाम देने के बाद भी यूपीएससी में कामयाबी नहीं मिली.
दोस्त बताते हैं कि मनोज ने बुरी तरह से असफल होने के बावजूद कुछ करने की ठान ली थी. उन्होंने पहले प्रयास में ही प्री पेपर क्लियर किया लेकिन दो साल तक इससे आगे नहीं बढ़े सके. फिर चौथे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में 121वीं रैंक से पास होकर आईपीएस अधिकारी बने. इसके बाद मनोज ने ग्वालियर से पोस्ट-ग्रैजुएशन करने के बाद पीएचडी भी पूरी की. मनोज शर्मा की कहानी दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण रही. आज लाखों युवा उनसे प्रेरणा लेते हैं और सिविल सेवा में अधिकारी भी बनते हैं.