मानव का इतिहास हजारों साल पुराना है. और तभी से मनुष्य का निरंतर विकास होता रहा है. मानव के शारीरिक और मानसिक विकास की प्रक्रिया कई भागों में विभाजित है और इनके अलग नाम भी है. एक्ट्रेस प्रकार के मानव निएंडरथल भी है जो हजारों साल पहले थे और इन्हीं हजारों साल पहले पाए जाने वाले मानव का 41 हजार साल पुराना कंकाल अब मिला है. वहीं वैज्ञानिक इस कंकाल के माध्यम से इस गुत्थी को सुलझाने के लगभग पास है कि पाषाण युग के लोग जानबूझकर मृतकों को दफन क्यों किया करते थे.
दरअसल स्पेन में बास्क यूनिवर्सिटी के फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च और म्यूजियम नेशनल डी’हिस्टोयर नेचरल के शोध कर्ताओं ने एक बच्चे के कंकाल की 47 हड्डियों की पहचान कर ली है. इन हड्डियों की पहले पहचान नहीं हुई थी. वहीं उन्होंने यह पुष्टि की है कि इन हड्डियों में से एक 41 हजार साल पुरानी भी थी. और इतना ही नहीं जब इस टुकड़े के माइटो कॉन्ड्रिया (कोशिकाद्रव्य) डीएनए का विश्लेषण किया गया था तो पता चला कि यह निएंडरथल मानव की हड्डी है.
आपको बता दें कि पिछले 150 सालों के दौरान यूरोप के कई हिस्सों में दर्जनों निएंडरथल के कंकाल खोजे गए हैं. जिन पर शोध कार्य लगातार होता रहता है.
दफनाने के बाद जगह को चिन्हित भी करते थे
हालाँकि स्पेनिश और फ्रांसीसी शोध कर्ताओं ने आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके इन अवशेषों की दोबारा जांच की है और दक्षिणी फ्रांस के ला फेरैसी में मूल पुरातात्विक स्थल की फिर से खुदाई भी की है. उन्होंने खुदाई में मिले बड़े संग्रह में से कुछ हिस्से का उपयोग निएंडरथल के कंकाल को पूरा करने के लिए किया हुआ है. साथ ही इसे लेकर यह भी कहा है कि इन्हें जानबूझकर दफन किया जाता था.और वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि 2 साल के बच्चे की बॉडी को जानबूझकर तलछट में खोदे गए गड्ढे में रख दिया गया था.
दरअसल शोधकर्ताओं ने यह कहा है कि शव के पास तक मांसाहारियों के जाने के निशान नहीं पाए गए हैं, लेकिन जहां शव रखा गया था, उस जगह को लेकर जरूर संकेत दिया गए थे. इससे यह पता चलता है कि कंकाल को जानबूझकर वहां दफनाया गया था.
उनके अध्ययन में कहा गया है कि, ‘अंतिम संस्कार की प्रथा शुरू होने के अपने तथा कथित आधुनिक ज्ञान संबंधी और व्यवहारिक कारण भी रहे हैं. ये नए परिणाम निएंडरथल के लापता होने के कालक्रम के बारे में चर्चा के लिए महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं. साथ ही इनसे सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति समेत व्यवहारिक क्षमता का भी पता चलता हैं.’