साहूकार का क़र्ज़ चुकाने के लिए इस बाप ने बेच डाली अपनी नवजात बच्ची, लेकिन अब ऊपर वाले ने किया इंसाफ
जहाँ एक तरफ भारत देश में बेटियों को लक्ष्मी समझ कर उन्हें पूजा जाता है, वहीँ कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इन बेटियों की असली कीमत नहीं समझ पाते और अनजाने में कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं, जिसका खामियाजा उन्हें उम्र भर भुगतना पड़ता है. कुछ ऐसा ही मामला हाल ही में हमे देखने को मिला है जिसे पढ़ कर शायद आपके पैरों तले से ज़मीन भी खिसक जाएगी. जी हाँ, यह मामला उत्तर प्रदेश जिले के बिजनौर में घटित हुआ है. जहां एक पिता ने बुरी तरह से क़र्ज़ में डूबने के बाद और उस क़र्ज़ का बोझ अपने सिर से उतारने के लिए कुछ ऐसा कर दिखाया जिसकी कल्पना शायद कोई भी नहीं कर सकता है. आईये जानते हैं आखिरकार यह पूरा वाक्या क्या है.
बेच दी अपनी मासूम बच्ची
खबरों के अनुसार एक पिता ने अपनी नवजन्मी बेटी को सहकर का कर्जा चुकाने के नाम पर बेच दिया. वहीँ साहूकार ने भी इंसानियत भुला कर उस बच्ची को आगे एक दंपति को बेच दिया. हालाँकि इस बच्ची की किस्मत अच्छी थी जो उसे ‘मातृ मंडल सेवा भारती’ संस्था ने ढूँढ निकाला और अंत में उस बच्ची को वापिस उसकी माँ के हाथों में सौंप दिया. बताया जा रहा है कि यह गरीब दंपति कांशीराम कॉलोनी के रहने वाले हैं. वहीँ ‘मातृ मंडल सेवा भारती’ की जिलाधीश शोभा शर्मा का कहना है कि इस कॉलोनी में रहने वाली महिला पर एक साहूकार का कर्ज़ा चढ़ा हुआ था जोकि हर दिन दस प्रतिशत की दर से बढ़ रहा था. लेकिन बाद में उस साहूकार की नज़र बच्ची पर आ यी और उसने बच्ची के बदले 37 हजार रूपये देने का लालच दे दिया.
माँ से छीन ली गई बच्ची
शोभा शर्मा के अनुसार इस बच्ची का जन्म बसंत पंचमी के दिन पर हुआ था. महिला साहूकार ने जब रुपयों का लालच दिया था बच्ची का बाप उस लालच में अँधा हो गया और 37 लाख के बाद एक और लाख रूपये लेने की बात पर बच्ची को बेच डाला. इसके बाद साहूकार महिला ने उस बच्ची को अवैध ढंग से दिल्ली के एक पति-पत्नी को बेच दिया. जब इस बात की भनक मातृ मंडल सेवा भारती को लगी तो वह इसके बाद सेवा भारती वालों ने उस बच्ची को उसकी माँ के पास भेजने की तलाश शुरू कर डी और आख़िरकार उन्हें सफलता भी हाथ लग गई.
इसके कुछ समय बाद ही संगठन पदाधिकारी भारती सिंह, हिमानी गौड़, प्रेमा श्रीवास्तव, लता शेखर व गीता अग्रवाल कांशीराम कॉलोनी जा पहुंचे और उस महिला साहूकार को दबोच लिया. जब ज्यादा दबाव बना तो साहूकार महिला को हार माननी पड़ी और आख़िरकार उस बच्ची को वापिस मंगवा लिया. इसके बाद संस्था ने बच्ची को उसकी माँ के हाथ सौंप कर उसका नामकरण किया और उसकी शिक्षा आदि का खर्च उठाने की बात कही.