एकादशी का दिन भगवान विष्णु जी को अति प्रिय है। इस दिन विशेष रूप से जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी की आराधना की जाती है। इसके साथ ही इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी जी की भी पूजा होती है। आपको बता दें कि अजा एकादशी व्रत भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है। इस वर्ष यह व्रत 3 सितंबर, दिन शुक्रवार को रखा जाएगा। धार्मिक दृष्टि से यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा बताया जाता है कि अजा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के समस्त प्रकार के पापों का नाश होता है। इतना ही नहीं बल्कि जो व्यक्ति यह व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर अंत में विष्णु लोक में पहुंच जाता है।
ऐसा माना जाता है कि अजा एकादशी व्रत का फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में दान-स्नान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होता है। यह व्रत एकादशी तिथि से प्रारंभ होकर द्वादशी तिथि की प्रातः काल समाप्त होता है। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख किया गया है की एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर स्नान करने के पश्चात व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके अलावा एकादशी की रात को नहीं सोना चाहिए बल्कि इस दिन रात के समय जागरण कर श्री हरि विष्णु जी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से एकादशी व्रत मुहूर्त, व्रत विधि और कथा के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
अजा एकादशी मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ- 2 सितंबर गुरुवार प्रातः काल 6 बजकर 21 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 3 सितंबर 2021, शुक्रवार प्रातः काल 7 बजकर 44 मिनट तक
व्रत पारण- 4 सितंबर 2021, शनिवार को सुबह 5 बजकर 30 मिनट से सुबह 8 बजकर 23 मिनट तक
जानिए अजा एकादशी व्रत विधि
1. आप एकादशी तिथि के दिन सुबह के समय सूर्य उदय से पहले उठ जाएं। उसके बाद स्नान आदि से निवृत हो जाएं।
2. अब आप भगवान विष्णु जी और माता लक्ष्मी जी के नियम सहित पूजा कीजिए।
3. आप व्रत वाले दिन निराहार रहते हुए शाम को फलाहार कर सकते हैं।
4. एकादशी के व्रत के दिन आप रात्रि के समय जागरण कीजिए।
5. द्वादशी तिथि के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन कराएं और विदा करते समय दान-दक्षिणा के रूप में कुछ ना कुछ जरूर दीजिए।
6. आप द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद दान-दक्षिणा दीजिए और फिर खुद भी भोजन कीजिए।
अजा एकादशी व्रत कथा
आपको बता दें कि अजा एकादशी की व्रत कथा सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी हुई है। राजा अपने राज्य को प्रसन्न रखते थे। राज्य में चारों तरफ खुशहाली बनी रहती थी। समय बीता और राजा का विवाह हुआ। राजा को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा अत्यंत वीर और प्रतापी थे।
एक दिन राजा ने अपने वचन को निभाने के लिए पुत्र और पत्नी तक को बेच दिया। राजा खुद भी एक चांडाल के सेवक बन गए। तब गौतम ऋषि राजा हरिश्चंद्र को इस संकट से निकलने का उपाय बताते हैं। राजा ने ऋषि मुनि के कहे अनुसार अजा एकादशी का व्रत रखा और विधि-विधान पूर्वक पूजा किया।
अजा एकादशी के व्रत से राजा के पिछले जन्म के सभी पाप कट जाते हैं और उन्हें खोया हुआ परिवार और राजपाट दोबारा से मिल जाता है। इसी वजह से सभी उपवासों में अजा एकादशी व्रत को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ऐसा बताया जाता है कि जो व्यक्ति अजा एकादशी व्रत रखता है उसको सभी प्रकार के पापों से छुटकारा मिलता है।