नवाब वाजिद अली शाह उत्तर प्रदेश के राजसी राज्य अवध के नवाब थे। वाजिद अली शाह अवध ने शासक के रूप में 9 साल तक उचित तरीके से शासन किया। वर्ष 1856 में ब्रिटिश सरकार ने वाजिद अली शाह के राज्य पर कब्जा कर लिया था। अंतिम नवाब वाजिद अली शाह को कोलकाता के मटियाबुर्ज के कारावास भेज दिया गया था, जिसके बाद वाजिद अली शाह की बेगम हजरत महल में स्वाधीनता की जंग लड़ी थी।
उन्होंने अंग्रेजों को चिनहट और दिलकुशा में भी एक बार हराया लेकिन आखिर में नेपाल में शरण बेगम हजरत महल को भी लेनी पड़ गई और यही 1879 में उनकी मृत्यु हो गई थी। ऐसा कहा जाता है कि वाजिद अली शाह की 300 से अधिक पत्नियां थीं और बेगम हजरत महल के साथ जंग में उनमें से कुछ पत्नियों ने भाग भी लिया था।
अंतिम नवाब को लेकर बहुत सी बातें कहीं जाती हैं। ऐसा बताया जाता है कि नवाब अपने नवाबियत के कारण ही अवध को अपने हाथों से खो चुके थे। वाजिद अली की नवाबियत के चर्चे कुछ इस तरह बताए जाते हैं कि नवाबों को लेकर कहीं जाने वाली सारी कहावतें इसी नवाब पर बनाई गई हैं। अवध में एक कहावत है “ज्यादा नवाब ना बनो, अमां यार नवाबियत ना झाड़ो। दरअसल, यह कहावत उस किस्से से जुड़ी हैं, जो नवाब वाजिद अली शाह के बारे में मशहूर हैं।
ऐसा बताया जाता है कि नवाब वाजिद अली शाह अपनी बीवियों और सेवकों पर ही पूरी तरह से निर्भर रहते थे। यहां तक कि वह अपनी जूतियां भी अपने हाथों से नहीं पहना करते थे और इसी कारण से नवाब वाजिद अली शाह ब्रिटिश सरकार के हत्थे चढ़ गए और उन्हें अपना साम्राज्य छोड़ना पड़ गया। ऐसा कहा जाता है कि 1857 की गदर के समय जब अंग्रेजों ने अवध पर कब्जा करने के लिए लखनऊ के महल पर हमला किया तब नवाब अपने महल में ही थे।
जूतियों की वजह से नवाब चढ़े थे अंग्रेजों के हत्थे
दरअसल, हुआ ऐसा कि जब ब्रिटिश सरकार हमला करते हुए महल में आ गई तो उनके डर से सेवादार महल छोड़कर इधर-उधर भागने लगे। वहीं नवाब वाजिद अली शाह की 300 पत्नियां भी इधर उधर जाकर छिप गई थीं। लेकिन वाजिद अली शाह अंग्रेजों के हत्थे चढ़ गए।
जब अंग्रेज सिपाहियों ने नवाब वाजिद अली शाह से यह सवाल पूछा कि “पूरा महल खाली हो गया है, सब भाग गए हैं, आप क्यों नहीं भागे?” तब जवाब देते हुए नवाब साहब ने यह कहा कि मुझे मेरी जूतियां नहीं मिली, उन्हें ढूंढ कर लाने वाला और पहनाने वाला कोई नहीं था। ऐसे में वह कैसे भागते। इसी वजह से वह बैठे रहे।
परीखाना में रहती थीं नवाब की तमाम पत्नियां
वाजिद अली शाह ने अपनी किताब इश्कनामा में खुद लिखा है कि उन्हें औरत और मर्द के रिश्ते का पहला एहसास 8 वर्ष की उम्र में रहीमन नाम की अधेड़ औरत ने करवाया था। यह पुस्तक राजपाल प्रकाशन ने “परीखाना” नाम से छापा है। वाजिद अली शाह ने कुल 60 किताबें लिखी थी, वह भी बड़े लेखक हुआ करते थे।
नवाब ने लगभग 300 शादियां की। इनमें से 112 से अधिक निकाह थे। परीखाना में 180 से अधिक औरतों को संगीत सिखाने के लिए नौकरी पर रखा गया था। परीखाना की बेगम, महलों और परियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी महिलाओं की थी। यहां पर कत्थक की महफिल हमेशा सजी रहती थी।
आपको बता दें कि वाजिद अली शाह अपने संगीत प्रेम और मोहब्बत की दास्तां के लिए मशहूर थे। वाजिद अली शाह अपनी पत्नियों को परिया कहते थे। परी वो जो नवाब की बीवियां थीं और जो परी नवाब के बच्चे की मां बनती थी उसे महल कहा जाता था।