6 साल की उम्र में गंवा दिए दोनों हाथ, नहीं हारी हिम्मत, भरत सिंह ने पैरों से लिखी खुद की तकदीर, रचा सफलता का नया इतिहास
इंसान के जीवन में समय हमेशा एक जैसे नहीं रहता है। कभी जीवन में दुख आते हैं, तो कभी जीवन में सुख आता हैं। लोग अपने जीवन में बहुत कुछ करना चाहते हैं परंतु सिर्फ चाहने से ही कुछ नहीं होता है। अगर आप अपने जीवन में कुछ कर दिखाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको कड़ी मेहनत और संघर्ष करने की जरूरत है। वैसे मेहनत तो सभी करते हैं परंतु हर कोई अपना सपना साकार कर ले ऐसा संभव नहीं हो सकता।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने जीवन की परिस्थितियों के आगे हार मान लेते हैं, लेकिन जो निरंतर प्रयास करते रहते हैं उन्हें एक ना एक दिन सफलता जरूर मिलती है। कहते हैं कि प्रतिभा कभी सुख-सुविधाओं की मोहताज नहीं होती। डगर चाहे कितनी भी कठिन क्यों ना हो, प्रतिभा उस पर जरूर आगे बढ़ जाती है। इंसान अपने मजबूत हौंसलों के दम पर ही अपनी मंजिल पा सकता है।
आज हम आपको सीकर जिले के दांतारामगढ़ तहसील के श्यामपुरा गांव निवासी भरत सिंह शेखावत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने इस बात को साबित कर दिखाया है। भरत सिंह के हाथ तो एक हादसे ने छीन लिए लेकिन वो उसके हौसले को नहीं छीन पाया। भरत सिंह ने अपनी हिम्मत के दम पर पैरों से ही अपनी खुद की तकदीर लिख डाली है।
एक हादसे में गंवा दिए थे दोनों हाथ
आपको बता दें कि 19 जून 1993 को एक बेहद ही गरीब परिवार में भरत सिंह शेखावत का जन्म हुआ था। भरत सिंह के नाना नानी के बुढ़ापे का सहारा ना होने के कारण उनके पिता ने उसे ननिहाल भेज दिया था और वह वही पढ़ते और वहीं रहते। एक दिन जब भरत सिंह अपने दोस्तों के साथ स्कूल जा रहे थे, तो उसी दौरान बिजली के खंभे को छू जाने की वजह से भरत सिंह को बहुत तगड़ा करंट लग गया था। इसमें उसके दोनों हाथ बुरी तरह से झुलस गए थे। उस समय भरत सिंह की उम्र महज 6 वर्ष की थी।
करंट लगने से हुई गंभीर हालत की वजह से भरत सिंह को जयपुर एसएमएस अस्पताल में एडमिट कराया गया, जहां पर डॉक्टरों ने काफी प्रयास किया परंतु इसके बावजूद भी उसके दोनों हाथ नहीं बचा पाए। 2 महीने एसएमएस हॉस्पिटल में एडमिट रखने के बाद भरत सिंह को घर भेज दिया गया था। भले ही इस हादसे में भरत सिंह ने अपने दोनों हाथ गंवा दिए थे लेकिन फिर भी भरत सिंह ने हिम्मत नहीं हारी।
भरत सिंह 2 साल तक अपने कमरे में ही रहे थे लेकिन जब दोस्तों को स्कूल जाते देखा तो भरत ने भी फिर पढ़ने का ठान लिया। भरत सिंह ने किशनगढ़-रेनवाल के एक निजी स्कूल में अपना एडमिशन कराया लेकिन यह सब उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था। स्कूल के निदेशक ने कहा था कि तुम्हारे तो हाथ ही नहीं हैं, तुम कैसे पढ़ाई कर पाओगे। तो भरत ने कहा था कि मेरे हाथ नहीं तो क्या हुआ मैं पैरों से लिखूंगा।
मां का हो गया निधन
भरत सिंह ने कई साल तक कड़ी मेहनत और अभ्यास के बाद पैरों से लिखना सीख लिया। भरत सिंह कक्षा 6 से कक्षा 12 तक घर से स्कूल तक लगभग 10 किलोमीटर तक पैदल जाया करते थे और वह हमेशा अपने क्लास में टॉप करते। लेकिन बाद में भरत सिंह को एक और तगड़ा झटका लगा। दरअसल, साल 2021 में भरत सिंह की मां इस दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई, जिसके बाद दादी ने ही भरत सिंह की देखभाल की। जब भरत सिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर ली तो उन्होंने कॉलेज में एडमिशन लिया। साल 2016 में देवेंद्र झाझड़िया ने पैरा ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता। बस वहीं से भरत ने सोचा कि अब मुझे देश के लिए मेडल लाना है। वह अपनी बहन के पास जयपुर में ओलंपिक की तैयारी करने के लिए चले गए।
मेहनत के दम पर पा ली सफलता
भरत सिंह ने साल 2018 में कृषि पर्यवक्षक की तैयारी एक निजी कोचिंग में करने लगे। उन्होंने 2 साल तक कड़ी मेहनत की और पहली बार में ही उन्होंने 300 अंक हासिल कर वह कृषि पर्यवक्षक बन गए। अभी भरत सिंह जयपुर के ही झोटवाड़ा में कृषि विभाग के ऑफिस में कार्यरत हैं। भरत सिंह का कहना है कि अभी उनकी उड़ान रुकी नहीं है। वह आगे भी निरंतर बढ़ने की सोचते रहेंगे। भरत सिंह ने यह साबित कर दिखा दिया है कि हौसलों से उड़ान भरी जा सकती है।