बेटी के भविष्य के लिए दोगुनी मेहनत कर रही है मां, दिन में करती है दुकान में काम, रात को चलाती है ई-रिक्शा
आजकल के समय में महिला और पुरुष में कोई भी अंतर नहीं है। महिलाएं भी पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर विभिन्न क्षेत्रों में देश के साथ-साथ अपने परिवार का नाम रोशन कर रही हैं परंतु बदलते भारत में भी बहुत सारी ऐसी जगह हैं, जहां आजीविका और परिवार का भरण पोषण करने के लिए महिलाओं का बाहर निकलकर काम करना अच्छा नहीं माना जाता है।
अगर कोई महिला ऐसी हिम्मत करती है, तो उसे समाज के घटिया तानों को सुनना पड़ता है परंतु कहा जाता है कि कई बार परिस्थितियां इंसान के हौसले को आजमाती हैं और जो मजबूत हौसले से कठिन परिस्थितियों का सामना करता है अक्सर इतिहास वही रखता है। कहते हैं कि “डर से नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।”
इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है भीलवाड़ा की रहने वाली शमा बानो ने, जो एक स्त्री होने के बावजूद लाज शर्म और समाज की परवाह नहीं की और अपनी बेटी का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी उठाई है।
बेटी के भविष्य के लिए ई-रिक्शा चलाती हैं शमा
आपको बता दें कि शमा बानो राजस्थान भीलवाड़ा की रहने वाली हैं। वह बिना किसी की फिक्र किए बिना ही आगे बढ़ना जानती हैं। एक महिला होने के नाते शमा बानो को अपने समाज में बहुत कुछ देख समझ कर चलना चाहिए था। परंतु वह ऐसा करती तो उनकी बेटी का भविष्य खतरे में पड़ जाता। शमा सिंगल मदर हैं। इसके बावजूद भी अपनी बेटी के उज्जवल भविष्य के लिए दोगुनी जी-तोड़ मेहनत कर रही हैं।
शमा अपनी बेटी के उज्जवल भविष्य के लिए दिनभर कपड़ों की दुकान पर काम करती हैं और शाम 5:00 से रात 10:00 बजे तक ई-रिक्शा चलाती हैं। इतना ही नहीं बल्कि शमा अपने ई-रिक्शा पर कभी दिव्यांग और बुजुर्गों से पैसे नहीं लेती हैं। शमा आज के दौर में महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं।
बहन की बेटी को लिया गोद
भीलवाड़ा शहर के जूनावास इलाके की रहने वाली शमीमा उर्फ़ शमा बानो ने भी सभी लड़कियों की तरह अपना घर बसा लिया था। उनके माता-पिता ने उनकी शादी बड़े ही धूमधाम के साथ की थी परंतु कुछ वक्त के बाद परिस्थितियां ठीक नहीं होने की वजह से वह अपने पिता के पास वापस आ गई थीं। इसी दौरान उन्होंने अपनी बहन की बेटी को गोद लिया, जिसको अच्छा जीवन देने के लिए वह दिन-रात मेहनत कर रही हैं। शमा सुबह से शाम तक कपड़े की दुकान पर काम करती हैं और शाम से रात तक ई-रिक्शा चलाकर अपनी बेटी के जीवन को संवारने में जुटी हुई हैं।
दूसरों के आगे नहीं फैलाए हाथ
शमा बताती हैं कि महिलाओं को दूसरों के आगे हाथ फैलाने की बजाय खुद संघर्ष करना चाहिए। शमा बानो का कहना है कि जब वह अपने ससुराल को छोड़कर आईं, तब उनको काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा था। मगर जब बहन की लड़की को गोद लिया तो उन्हें एक मकसद मिल गया। इसके बाद उन्होंने अपनी बेटी को एक अच्छा जीवन देने के लिए काम शुरू कर दिया।
शमा का कहना है कि दूसरों के आगे हाथ ना फैलाकर महिलाओं को खुद संघर्ष करना चाहिए। वह महिलाओं को यही संदेश देना चाहती हैं कि अपनी परेशानियों को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दें, फिर चाहे यह समाज आपका साथ दे या ना दे।