बहु ने निभाया बेटी का फर्ज़, ससुर की अर्थी को कंधा देकर दी दुनिया को अनूठी मिसाल
बिलासपुर: हिंदू धर्म में जन्म से लेकर मरन तक के लिए कईं तरह के रीति-रिवाज़ और संस्कार निभाए जाते हैं. जब भी घर में किसी व्यक्ति का निधन हो जाता है तो सब रस्में पूरी करने के बाद उसकी अर्थी को बेटे या परिवार के अंश से कंधा दिलवाया जाता है. हालाँकि पुराने समय में बेटियों को इन परंपराओ का हिस्सा नहीं बनाया जाता था. लेकिन आज की बेटियां किसी से कम नहीं है. इस पढ़े लिखे दौर में हर बेटी अपने फ़र्ज़ निभा रही है. बता दें कि घर में यदि किसी बड़े का देहांत हो जाए तो उसकी अर्थी को या तो उसका बेटा कंधा देता है या फिर बेटी. लेकिन आज हम आपको जिस घटना के बारे में बता रहे हैं, उसे पढ़ कर आपके मन में बहुओं प्रति इज्जत काफी गुना बढ़ जाएगी.
बेटी की तरह दिया साथ
दरअसल, हाल ही में एक बहु ने अपने ससुर के मरने पर उसके मृत शरीर को कंधा दिया. इस बहु ने ना केवल एक संस्कारी बहु होने का फ़र्ज़ निभाया है बल्कि वह उस ससुर के लिए बेटी से बढ़ कर साबित हुई है. यह मामला बिलासपुर का है. यहां के केन्द्रीय स्वर्णकार समाज के अध्यक्ष एवं विधि महाविद्यालय के शिक्षक रहे प्रो. खेमनाथ का निधन हो गया. उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए मुक्तिदाम सरकंडा ले जाया गया था. इस बीच जहाँ बेटे ने अपना फ़र्ज़ पूरा किया, वहीँ बहु ने भी एक बेटी की तरह बढ़ चढ़ कर हर रस्म में हिस्सा लिया और फिर अर्थी को कंधा भी दिया.
रूढ़िवादी परंपरा को किया खत्म
बता दें कि हमारे भारतीय समाज में बहुओं को वह अधिकार नहीं दिए जाते, जिसकी वह हकदार होती हैं. जहां एक लड़की अपना घर छोड़ कर ससुराल कदम रखती है और उम्मीद करती है कि वहां उसे बेटी की तरह प्यार से रखा जाए, वहां उसे बहु की तरह ट्रीट किया जाता है. जोकि सच में निंदनीय है. लेकिन जांजगीर-चांपा जिले की राधिका स्वर्णकार ने अनूठी मिसाल पेश की है. राधिका की शादी बिलासपुर के अशोक स्वर्णकार से हुई थी. अशोक के पिता राधिका को बेटी से भी बढ़ कर मानते थे. ऐसे में जब उनका देहांत हुआ तो इस बहु ने अपने बेटी होने के फ़र्ज़ को पूरा किया. राधिका की इस हिम्मत की सराहना स्वर्णकार समाज ही नही बल्कि पूरा देश कर रहा है.
राधिका स्वर्णकार ने यह साबित कर दिखाया है कि यदि एक बहु चाहे तो वह बेटी भी बन सकती है और पिता सामान ससुर की अंतिम रस्में भी बखूबी निभा सकती है. राधिका की तरह ही देश के अन्य लोगों को अपनी सोच बदलने की सख्त आवश्यकता है तभी हमारे रूढ़िवादी समाज की सोच बदल पाएगी. आज पूरा देश राधिका जैसी बहु को सलाम कर रहा है.