ठंड से ठिठुरे भिखारी को देख कर रोक दी DSP ने गाड़ी, जब शक्ल देखी तो निकला उन्ही के बैच का अफ़सर

कहते हैं इंसान के पहरावे से हर कोई धोखा खा जाता है. अच्छे कपडे जहाँ इंसान को सोसाइटी में हाई क्लास साबित करते हैं तो वही फाटे पुराने कपडे उसे गरीब भी झलकाते हैं. लेकिन कईं बार ऐसा भी होता है की जो हमे दिखता है, वह हमारी आँखों का महज़ एक धोखा होता है क्यूंकि वह सच नहीं होता. कुछ ऐसा ही मामला ग्वालियर जिले से सामने आया है. जहाँ के DSP ने सड़क पर जब एक भिखारी को ठंड में कांपते हुए देखा तो उन्होंने अपनी गाड़ी रोक कर उसकी मदद करने की सोची. लेकिन जैसे ही उन्होंने गाडी से उतर कर भिखारी से मुलकात की तो वह कोई गरीब भिखारी नहीं बल्कि उनके ही बैच का एक ऑफिसर निकला.

कुछ समय पहले ग्वालियर में उपचुनाव की मतगणना की जा रही थी. ऐसे में दौरे के लिए डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिंह भदौरिया झांसी रोड से गुजर रहे थे. जैसे ही वह बंधन वाटिका के पास पहुंचे तो उन्हें वह एक अदेड उम्र का व्यक्ति ठंड से बिलखता दिखाई दिया. इस हाल में व्यक्ति को देख कर दोनों अफसरों ने उसकी मदद करनी चाही और अपनी गाडी रोक दी.

जब वह उस भिखारी के नज़दीक पहुंचे तो मामला कुछ और ही निकला. यह भिखारी उनके बैच का ही एक ऑफिसर था. इसके बाद तुरंत दोनों ने मिलकर उस व्यक्ति की मदद की और अपने जूते व जैकेट उतार कर उसे पहनने को दे दी. बातचीत के दौरान उन्हें समझ में आया कि वह उनका जानकार ही था.

भिखारी के भेस में घूमने वाला यह शख्स असल में एक समय में पुलिस अफसर रह चुका है. इसका नाम मनीष मिश्रा था जोकि पिछले 10 सालों से सड़कों पर ऐसे ही घूम रहा था. असल में यह व्यक्ति डीएसपी के 1999 बैच का एक पुलिस अधिकारी था जोकि एक समय में निशानची भी था. मिली जानकारी के अनुसार मनीष शर्मा कार्यकाल के दौरान पुलिस थानों में विभिन्न पोस्टों पर पदस्थ रहे हैं.

मनीष मिश्रा ने आखिरी बार साल 2005 में नौकरी की थी. उस समय वह दतिया में काम कर रहे थे. लेकिन वहीँ काम करने के दौरान धीरे-धीरे उनकी मानसिक स्तिथि में बिगड़ाव आता चला गया. जब उनके घरवाले उन्हें इलाज के लिए उन्हें अस्पताल ले गए तो वह वहां से निकल कर भाग लिए और सड़कों पर ऐसे ही घूम कर जीवन व्यतीत करने लगे.

रत्नेश को मनीष मिश्रा ने बताया कि उनकी हालत खराब होने के बाद उनकी पत्नी ने भी घर छोड़ दिया था और उनसे तलाक ले लिया था. वह तनाव में आकर और बीमार हो गए और सड़कों पर भीख मांग कर जीने लग गए. ऐसा करते करते उन्हें कब दस साल बीत गए उन्हें मालूम ही नहीं हुआ. हालाँकि डीएसपी ने मनीष को अपने साथ लिजाने की बात भी कही लेकिन उन्होंने उनकी एक नहीं सुनी.

फ़िलहाल मनीष को दोनों अधिकारीयों ने मिल कर एक समाजसेवी संस्था में भेज दिया है जहाँ पर उनकी अच्छे से देखभाल भी की जा रही है. एक्स ऑफिसर मनीष के भाई थानेदार हैं और उनके पिता भी रिटायर्ड एसएसपी हैं. मनीष की कहानी जो भी सुनता है, वह हैरान रह जाता है.