पूरे परिवार ने त्याग दी सांसारिक मोह माया, 30 करोड़ की संपत्ति दान कर ले ली दीक्षा

मनुष्य अपने जीवन में बहुत से कार्य करता है। उन्हीं कार्यों में से एक दान है। दान का साधारण अर्थ है किसी वस्तु पर से अपना अधिकार समाप्त करके दूसरे का अधिकार स्थापित करना। इसके बदले में कोई भी वस्तु नहीं ली जाती है। ऐसा कहा जाता है कि दान करना जीवन का सबसे अच्छा और फलदाई काम है। अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान, यह सारे दान इंसान को पुण्य के भागी बनाते हैं।

किसी भी वस्तु का दान करने से मन को सांसारिक मोह से छुटकारा मिलता है। हर तरह के लगाव और भाव को छोड़ने की शुरुआत दान और क्षमा से ही होती है। दान एक ऐसा कार्य है, जिसके माध्यम से हम ना सिर्फ धर्म का ठीक-ठाक पालन कर पाते हैं बल्कि अपने जीवन की तमाम समस्याओं से भी निकल सकते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि जीवन की तमाम समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए भी दान का विशेष महत्व है लेकिन दान का फल तभी मिलता है जब उसे निस्वार्थ भाव से किया जाए। जो व्यक्ति बिना किसी लालच के दान देते हैं, उसे उसका फल ईश्वर जरूर देता हैं। दान किसी भी रूप में हो सकता है।

इसी बीच देश के एक ऐसे ही दानवीर परिवार कि इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। जी हां, क्योंकि इस परिवार ने अपनी-अपनी करोड़ों की संपत्ति दान कर ईश्वर की राह पर चलने का निर्णय ले लिया है। पूरे परिवार ने सांसारिक मोह माया को त्याग दिया है।

दरअसल, यह परिवार अब अपने आराम की जिंदगी को त्याग कर संयम के कठिन रास्ते पर निकल पड़ा है। गुरुवार को जैन बगीचे में परिवार के मुखिया मुमुक्षु भूपेंद्र डाकलिया समेत पांच लोगों को भागवती दीक्षा दिलाई गई। छत्तीसगढ़ के दवा का कारोबार करने वाला डाकलिया परिवार ने 30 करोड़ की संपत्ति दान कर जैन धर्म के संस्कारों के तहत दीक्षा ली।

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के गंज चौक के रहने वाले 47 वर्षीय मुमुक्षु भूपेंद्र डाकलिया के परिवार में दीक्षा लेने वालों ने उनकी 45 वर्षीय पत्नी सपना डाकलिया और उनके चार बच्चे शामिल हैं, जिसमें 22 वर्षीय महिमा डाकलिया, 16 वर्षीय हर्षित डाकलिया, 18 वर्षीय देवेंद्र डाकलिया हैं। हालांकि 20 साल की मुमुक्षु मुक्ता डाकलिया ने इन लोगों के साथ स्वास्थ संबंधी कुछ कारणों से दीक्षा नहीं ली। अब उनके दीक्षा फरवरी में होगी।

मुमुक्षु भूपेंद्र का ऐसा बताना है कि उनकी करोड़ों की प्रॉपर्टी में जमीन, दुकान से लेकर अन्य संपत्तियां शामिल हैं। लेकिन साल 2011 में रायपुर में स्थित कैवल्यधाम जाने के बाद से ही उनके मन में संन्यास लेने का ख्याल आया। वहीं 9 नवंबर को उनके परिवार ने ऐशो-आराम युक्त जिंदगी को त्याग कर दीक्षा लेने का निर्णय लिया। इसके बाद पूरा परिवार एक साथ सन्यास की तरफ चल पड़ा।

जैन धर्म के लोगों का कहना है कि ऐसा खरतरगच्छ में पहली बार हुआ है कि जब पूरे परिवार में एक साथ दीक्षा ग्रहण की है। वहीं मुमुक्षु भूपेंद्र ने बताया है कि कैवल्यधाम जाने के दौरान हमारे सबसे छोटे बच्चे हर्षित के मन में इस दीक्षा को लेने का भाव आया। उस वक्त उसकी उम्र 6 वर्ष की थी। उन्होंने बताया कि हर्षित में हंसते-हंसते गुरु के सानिध्य में अपना केश लोचन कराया था।

उन्होंने बताया कि यहीं से चारों बच्चों के मन में दीक्षा का भाव पैदा हुआ था। धाम से लौटने के बाद से बच्चों ने दीक्षा लेने की बात कही लेकिन कम उम्र होने के चलते उस समय दीक्षा नहीं ली। अब 10 साल के पश्चात भी उनके मन में दीक्षा का भाव बना हुआ देख मैंने उनके निर्णय पर सहमति दी है। बता दें कि दीक्षा संस्कार के बाद परिवार के सभी मुमुक्षुओं को अलग कर दिया गया।