350 डिग्री तापमान में पकाने के बाद आपके घर पहुँचता है मखाना, जानिए कैसे बनाया जाता है लावा?
आजकल के शादी ब्याह में ड्राई फ्रूट्स को मिठाई से रिप्लेस कर दिया गया है. वैसे देखा जाए तो ड्राई फ्रूट के कई फायदे हैं जो मनुष्य शरीर को विटामिन और कैल्शियम जैसे तत्व देते हैं. ड्राई फ्रूट की बात की जाए तो मखाने का नाम ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता. वही मिथिला का मखाना सबसे अधिक मशहूर माना जाता है. बता दे कि मिथिला से मखाना आपकी थाली में पहुंचने से पहले कई प्रक्रियाओं से गुजरता है जिसे जानना शायद आप सबके लिए आवश्यक है. दरअसल लावा से इस मखाने को तैयार किया जाता है जो कि काफी जटिल तकनीक है. इसके अलावा इसमें मखाने को तैयार करने के लिए कम से कम 350 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है इसके बाद जाकर मखाने की गुर्री नरम लावे की शक्ल में बाहर आती है. गौरतलब है कि मखाना तैयार करने वाले लावे को तैयार करने के लिए तापमान औसतन 45 से 50 डिग्री तक का चाहिए होता है. वही इसको बनाने के लिए कम से कम 72 से 80 घंटे लग जाते हैं.
जानकारी के लिए बता दें कि मखाने के बीज यानी कि गुर्री निकालना काफी चुनौतीपूर्ण साबित होता है. कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि मखाने की खेती दुनिया के सबसे जोखिम भरी खेती है क्योंकि इसे उगाने के लिए कम से कम 4 से 5 फुट गहरे पानी में बेहद नुकीले कांटो वाले पौधों से इसे तोड़ना पड़ता है. इसको तोड़ने के लिए कई बार उंगलियां भी लहूलुहान हो जाती हैं और कईयों की उंगलियों में कठोर गांठे भी उभर आती हैं. अधिकतर लोग रात के समय इसको गहरे पानी की पांक में धंसे इसके फल यानि गुर्री को डुबकी मार मार कर निकालते हैं जो कि जान पर खेलने जैसी प्रक्रिया है. इसकी खेती करने वाले व्यक्तियों को युवा शिवम मल्लाह कहा जाता है जो कि 2 से 3 मिनट की डुबकी के दौरान इन्हें तोड़ते हैं. कीचड़ में लिपटी इसकी गुर्री को निकालने के लिए कई बार नाखून भी उखड़ जाते हैं.
कठिन अनुभव से बनता है मखाने का लावा
आपको बता दें कि ताल से गुर्री निकालने वालों को बहुरिया कहते हैं यह मल्लाहों की ही एक तरह की जाती है. मल्लाह असल में पानी में ऐसे डुबकी लगाकर तैरते हैं जैसे कि पैदल दौड़ रहे हो क्योंकि यह काफी कुशल गोताखोर होते हैं और केवल इनके कौशल पर ही मखाने का उत्पादन टिका हुआ है. केवल मिथिला में ही करीब साढ़े लाख या उससे कुछ ज्यादा परिवार हैं जो मखाना बना रहे हैं. इसके अलावा छोटे-छोटे कुटीर उद्योग की शक्ल में चल रहे इन कारखानों से ₹210 प्रति किलोग्राम के दाम से मखाना शहरों से सुपरमार्केट तक ले जाया जाता है और फिर यह आगे चलकर 1200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है.
ऐसे बनता है मखाने का लावा
मखाने को तैयार करने के लिए पहले इसका लावा तैयार करना होता है ऐसे में सबसे पहले कारखानों में गुर्री की ग्रेडिंग 6 छलनियों से की जाती है. कच्चे लोहे की मिश्रित मिट्टी के 6 बड़े चुल्ल्हों व भट्ठियों पर रखा जाता है इनका तापमान 250 से 350 डिग्री सेल्सियस तक होता है. 72 घंटे बाद फिर से दूसरी हीटिंग दी जाती है जिसके बाद लावे के ऊपर परत एकदम चटक जाती है ऐसे में जब इसको हाथ में लेकर हल्की चोट दी जाती है तो नरम मखाना बाहर निकल आता है.