कारगिल युद्ध मे कभी छुड़वा चुके हैं दुश्मनों के छक्के, जानिए ‘शेरशाह’ विक्रम बत्रा की लाइफ स्टोरी
भारत देश वीर जवानों का देश है. यहां बहुत से स्वतंत्रता सैनानियों ने जन्म लिया है. वहीं आज के इस ख़ास पोस्ट में हम आपको कारगिल युद्ध के ‘हीरो’ रहे विक्रम बत्रा के बारे में बताने जा रहे हैं. विक्रम बत्रा के जीवन पर आधारित हाल ही में एक फ़िल्म रिलीज़ की गई है जिसमे उनके बचपन से लेकर जवानी तक के फौजी ज़ज़्बे को दिखाया गया है. इस फ़िल्म को अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज किया गया है.
फ़िल्म का नाम विक्रम बत्रा की तरह ही दमदार यानी “शेरशाह” रखा गया है जिसमे सिद्धार्थ मल्होत्रा मुख्य भूमिका निभाते नज़र आ रहे हैं. इस फ़िल्म ने हमारे दिलों में एक बार फिर से कारगिल के इस वीर की यादों को ताज़ा कर दिया है. शायद यही कारण है जो आज हम आपको इनकी अनदेखी तस्वीरें डिझाने जा रहे हैं जो शायद आपने पहले नही देखी होंगी.
बता दें कि फ़िल्म “शेरशाह” की स्क्रीनिंग के समय उनका परिवार भी मौजूद था. यह फ़िल्म फिलहाल दर्शकों को काफी पसंद आ रही है. हर कोई विक्रम बत्रा की बहादुरी के किस्से गाता नज़र आ रहा है. स्पॉटबॉय की एक ख़बर के अनुसार स्क्रीनिंग के दौरान सिद्धार्थ मल्होत्रा को विक्रम बत्रा के किरदार में देख मार उनके परिवार वाले रो दिए थे.
जानकारी के लिए बता दें कि फ़िल्म में जहां एक तरफ सिद्धार्थ कैप्टन बत्रा के रोल में नज़र आ रहे हैं तो वहीं कियारा अडवाणी उनकी मंगेतर चीमा का रोल प्ले करती दिखाई दे रही हैं. दोनों ही एक्टर्स ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है. शायद यही कारण है जो आज यह फ़िल्म बॉक्स आफिस पर हिट हो चुकी है. आपको बता दें कि कारगिल के युद्ध के समय विक्रम बत्रा जम्मू-कश्मीर राइफल्स 13वीं बटालियन का अहम हिस्सा थे.
युद्ध के दौरान उन्हें कैप्टन घोषित किया गया था जिसके बाद उन्होंने खुद को एक सफल लीडर भी साबित किया. 1999 में हुए इस कारगिल युद्ध के बाद पाकिस्तानी सेना ने उन्हें संदेश में “शेरशाह” कह कर संबोधित किया था. उनकी बहादुरी ने दुष्मनो को चारों खाने चित कर दिया था.
बत्रा साहिब का परिवार
विक्रम बत्रा का जन्म हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वादियों के शहर पालमपुर में हुआ था. इनके चार भाई और बहनें थी. 1996 में विक्रम बत्रा सैन्य प्रशिक्षण स्कूल देहरादून की भारतीय अकादमी में शामिल हुए. 1998 में उनकी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर के सोपोर में कई गई थी. वह अपने काम मे ओतने माहिर थे कि उन्हें कप्तान बना दिया गया था.
1999 का कारगिल वार
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध को कोई भूल नही पाया है. इस युद्ध मे विक्रम बत्रा हीरो बन कर उभरे थे. विक्रम के परिवार वालों ने उनकी बात आखिरी बार 29 जून 1999 को सुनी थी. उस समय उन्होंने अपनी माँ की चिंता जताते हुए कहा था कि, “आप बिलकुल चिंता ना करो मैं एकदम ठीक हूं…!” 20 जून को चोटी 5140 (लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई) पर नियंत्रण के लिए उन्होंने अपनी टीम का नेतृत्व किया था.
गोली लगने के बाद नही मानी हार
जब कैप्टन विक्रम को दुश्मनों की गोली लगी तो वह बिल्कुल भी पीछे नही हटे और हथगोले फेंकते चले गए. उन्होंने सामने वाली सेना का बेहद बहादुरी और निडरता से सामना किया. उन्होंने अपनी टीम की ‘ये दिल मांगे मोर’ कोडवर्ड के ज़रिए बताया था कि उन्होंने चोटी को वापिस पा लिया है. वह घायल होकर भी आगे धते गए ताकि उनके दुश्मन हार मान लें. उनकी शहादत को आज भी कोई भूल नही पाया है. उनका नाम एक कामयाब लीडर के तौर पर याद किया जाता है.
परमवीर चक्र
आपकी जानकारी के लिए बताते चले कि विक्रम बत्रा को 15 अगस्त 1999 को तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन द्वारा मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.