बुंदेलखंड का गढ़कुंडार किला है बेहद रहस्यमई, लेकिन अब धीरे-धीरे होता जा रहा है खत्म, जानिए इसकी कहानी
भारत में इतिहासिक किलो की भरमार रही है. यहां ऐसे बहुत से किए हैं जो अपने अंदर से ही राज समोय हुए बैठे हैं. उन्हीं में से बुंदेलखंड का गढ़कुंडार किला भी एक है. यह किला अपनी बनावट और सत्यापित कला के लिए जाना जाता है. यह आपको बुंदेलखंड के 12 किलोमीटर दूर से ही नजर आ जाएगा. लेकिन हैरत की बात यह है कि जब आप किले से महज 100 मीटर की दूरी पर होते हैं तो यह किला दिखना गायब हो जाता है. यह किला वास्तुकला के मामले में बेहद अनूठा बताया जाता है साथ ही यह वर्षों पूर्व की बहुमंजिला भवन की निर्माण शैली को दिखाता है.
गढ़कुंडार और खंगार वंश
जानकारी के लिए बता दें कि 12 वीं शताब्दी के दौरान पृथ्वीराज चौहान के प्रमुख सामंत खेत सिंह खंगार ने परमार वंश के गढ़पति शिवा को मात देकर इस किले पर कब्जा किया था और फिर खंगार वंश की नींव रखी थी. ऐसे में यह किला लगभग 9 शताब्दी पहले बनाया गया था जो कि 1 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में वर्गाकार जमीन पर खड़ा है. बताया जाता है कि यह किला चंदेल काल के दौरान चंदेल सैनिकों का मुख्यालय और सैन्य अड्डा हुआ करता था. इसका निर्माण कार्य 925 – 40 साल पूर्व ही यशो वर्मा चंदेल ने दक्षिणी पश्चिमी बुंदेलखंड को अधिकार में लेकर करवाया था.
किला है मृगमरीचिका के सामान
बताते चलें कि यह किला एक पहाड़ी पर बना हुआ है वह काफी दूर तक फैली सैकड़ों छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ है. किले की एक खासियत यह भी है कि यह कई किलोमीटर की दूरी पर ही दूर से नजर आ जाता है. परंतु जैसे ही आप किले के नजदीक आने लगते हैं तो यह आपकी आंखों से ओझल होता चला जाएगा. आपको जिस स्थान पर किला नजर आ रहा होगा पास जाकर वहां आपको कोई दूसरी पहाड़ी नजर आने लगेगी. गढ़कुंडार की इसी मृगमरीचिका के कारण दुश्मन सदियों तक इसके पास नहीं आ पाए थे. अपनी इसी खासियत के कारण ही यह किला विशाल सैन्य शक्ति के चलते सदियों तक मुस्लिम आक्रमणकारियों से सुरक्षित रहा है.
राजमहल के हैं 8 खंड
बता दें कि यह दुर्ग लाल भूरे पत्थरों से निर्मित है. किले के पास जाकर आपको सबसे पहले गढ़ीनुमा प्रवेश द्वार नजर आएगा जिसको यहां के लोग ड्योढ़ी भी कहते हैं. इसके नीचे ढलान बनी है और साथ ही ऊपर छज्जानुमा निर्माण एवं सतर्क सैनिकों द्वारा हर चीज पर नजर रखने के लिए एक बालकनी बनाई गई है. थोड़ी ही दूरी पर जाकर आपको किले का मुख्य द्वार नजर आएगा इसके ठीक सामने एक चौड़ा चबूतरा भी है जहां 5 साल पुरानी अष्टधातु की तोप हुआ करती थी. बहुत से लोगों को यह किला भूल भुलैया की तरह लगता है और समझ में नहीं आता. एक समय में राज महल के बाहर बने घुड़साल में राजा के कई घोड़े बांधे जाते थे. घुड़साल के ठीक सामने यह भव्य राज महल खड़ा है. इस राजमहल के कुल 8 खंड है जिसमें से तीन खंड जमीन के अंदर है तथा चार खंड जमीन से ऊपर है.
बेहतरीन शौचालय व्यवस्था
इस दुर्ग में एक चीज और अच्छी थी कि यहां सैनिकों के शौचालय के लिए बेहतरीन व्यवस्था की गई थी. किले में लगभग 20 कैंपस है जहां शौचालय बनाए गए हैं. हर कैंपस में लगभग एक दर्जन लोग शौचालय के लिए जा सकते हैं. बताते चलें कि संख्या 1182 से लेकर 1257 तक यहां खंगार राज्य रहा. जबकि 1257 से लेकर 1539 तक यहां बुंदेलों ने शासन किया इसके बाद 1531 में राजा रुद्र प्रताप देव ने इसे अपनी राजधानी बना लिया. जबकि 1605 में ओरछा के राजा वीर सिंह देव ने इसकी सुध अपने नाम कर ली.
रुपयोवना केसर
किले के इतिहास की बात करें तो खंगार राजवंश के अंतिम राजा मानसिंह की एक बेहद सुंदर कन्या थी जिसका नाम केसर था. केसर इतनी खूबसूरत थी कि उसकी सुंदरता के चर्चे दूर दिल्ली तक पहुंच चुके थे. जब दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद तुगलक को केसर के बारे में पता चला तो उन्होंने उसके साथ शादी का प्रस्ताव भेज दिया. लेकिन शादी ठुकराने पर मोहम्मद तुगलक जैसे बोखला ही गया. बदले के लिए 1347 में उसने गढ़कुंडार पर आक्रमण कर दिया और उसको अपने कब्जे में ले लिया. कहा जाता है कि केसर ने अपनी इज्जत बचाने के लिए अपनी सखियों के साथ किले के अंदर बने कुएं में खुद को आग लगाकर उस में कूदकर जान दे दी थी. केसर की इस गाथा को आज भी बुंदेल के लोकगीतों में गाया जाता है.
बेहद रहस्यमई है यह दुर्ग
गढ़कुंडार को लेकर तरह तरह की कहानियां प्रचलित हैं. लोगों के अनुसार ही एक बेहद रहस्यमई किला है जो अपने अंदर ना जाने कितने ही राज छुपाए बैठा है. कहा जाता है कि यहां से एक बार पूरी बरात ही गायब हो गई थी. वहीं कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यहां बेहद बड़ा खजाना छिपा हुआ है जिससे पूरे भारत देश की गरीबी को दूर किया जा सकता है.