पिता के निधन के बाद और बिगड़े हालात, स्कूल फीस के नहीं थे पैसे, साइकिल रिपेयर की, अपनी मेहनत और लगन से शख्स बना IAS
ऐसा कहा जाता है कि कामयाबी सभी को नहीं मिल पाती है परंतु ऐसा नहीं है कि कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती। जिस इंसान के इरादे मजबूत हों और वह अपने जीवन की हर परिस्थिति का लगातार सामना करते हुए आगे बढ़ता है, वह एक ना एक दिन कामयाबी जरूर हासिल करता है। कामयाबी पाने के लिए जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। जीवन की हर कठिनाई को पार करने के बाद ही व्यक्ति एक कामयाब इंसान बन पाता है।
अक्सर देखा गया है कि लोग कामयाबी पाने के लिए मेहनत तो करते हैं परंतु कामयाबी के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों के आगे ज्यादातर लोग घुटने टेक देते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हर कठिनाई को पार करते हुए अपने सपने को साकार कर दिखाते हैं। इसी बीच एक साइकिल रिपेयर करने वाले शख्स के आईएएस ऑफिसर बनने की कहानी सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोर रही है।
दरअसल, इस शख्स के पास कभी कॉलेज में दाखिला के लिए पैसे तक नहीं हुआ करते थे, परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। लेकिन उसी आदमी ने एक दिन अपनी मेहनत और लगन से यूपीएससी परीक्षा पास कर ली और आईएएस अधिकारी बन गया। जी हां, मुश्किल हालातों से लड़ते हुए सफलता की इबारत लिखने वाले जिस शख्स के बारे में हम आपको बता रहे हैं उनका नाम वरुण बरनवाल है। आईएएस वरुण बरनवाल ने हाल ही में एक यूट्यूब चैनल पर अपनी प्रेरक कहानी बयां की है।
पिता के निधन के बाद और बिगड़े हालात
आपको बता दें कि वरुण बरनवाल महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर बोईसर के रहने वाले हैं। उनका जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। बचपन से ही वरुण पढ़ाई लिखाई में बहुत होशियार थे और वह खूब पढ़ना लिखना चाहते थे। वरुण के पिता जी की एक साइकिल रिपेयर की दुकान थी। इस दुकान से बस इतनी कमाई हो जाती थी कि बच्चों की पढ़ाई के साथ घर का खर्च चल सके।
लेकिन वरुण दसवीं की परीक्षा खत्म होने के 4 दिन बाद ही उनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया। घर की आर्थिक स्थिति पहले से ही बहुत खराब थी, ऊपर से पिता के निधन के बाद परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ वरुण के कंधों पर आ गई।
पिता के निधन के बाद वरुण पूरी तरह से टूट गए थे लेकिन उन्होंने दसवीं में टॉप किया। पिता के गुजर जाने के बाद वरुण ने पढ़ाई को छोड़ दुकान संभालने का फैसला कर लिया। परंतु घरवाले चाहते थे कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखें, जिसके चलते वरुण ने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी।
कॉलेज में दाखिला के लिए नहीं थे पैसे
वरुण के पास कॉलेज में दाखिला के लिए ₹10000 भी नहीं थे लेकिन एक दिन उनके पिता का इलाज करने वाले डॉक्टर ने खुद पैसे देकर वरुण का दाखिला करवा दिया, जिसके बाद से वरुण ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक परीक्षा में टॉप करते गए। पढ़ाई करने के साथ-साथ वह अपनी साइकिल की दुकान भी चलाया करते थे। जब वह स्कूल से वापस लौटते थे, तो वह दुकान पर साइकिल रिपेयर किया करते थे, जो भी कमाई होती थी उससे घर का गुजारा जैसे तैसे चलता था।
वरुण की बड़ी बहन ट्यूशन भी पढ़ाने लगी थीं। वरुण का ऐसा कहना है कि कई बार उन्हें पैसे की कमी से जूझना पड़ा, स्कूल फीस के महीने के ₹650 भी वह नहीं जुटा पाते थे। ऐसे में उन्होंने ट्यूशन करने शुरू कर दिए। वह दिन में स्कूल जाते थे फिर ट्यूशन पढ़ाते थे और दुकान का हिसाब किताब भी देखते थे। वरुण के जीवन में बहुत सी कठिन परिस्थितियां आई परंतु इतने संघर्ष के बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी थी। वह लगातार मेहनत करते रहे।
टीचर्स और दोस्तों ने मिलकर भरी फीस
वरुण ने आगे चलकर इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। यहां भी पैसों की कमी का सामना करना पड़ा परंतु कॉलेज में जब उन्होंने टॉप किया तो स्कॉलरशिप मिली और हालात थोड़े सुधर गए। लेकिन इस दौरान एक बार टीचर्स और दोस्तों ने मिलकर उनकी फीस भर दी थी। इतना ही नहीं बल्कि किताबें भी लाकर उनको दी थी। इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने नौकरी शुरू की।
लेकिन इसी बीच वरुण का मन सिविल सर्विसेज में जाने का बन गया था और फिर उन्होंने एक कोचिंग क्लास ज्वाइन की और यूपीएससी की तैयारी में जुट गए। IAS वरुण कहते हैं कि उन्होंने UPSC की कोचिंग के लिए एक भी पैसे नहीं दिए थे। उनकी आर्थिक स्थिति देखने हुए टीचर्स ने भी उन्हें फीस देने के लिए फोर्स नही किया था।
साल 2013 में हुए यूपीएससी की परीक्षा में वरुण 32वां रैंक लाकर IAS अफसर बने। पहले ही प्रयास में उन्होंने यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा को पास कर अपने सपने को साकार कर लिया। मौजूदा समय में वरुण कुमार बरनवाल गुजरात में बतौर IAS तैनात हैं।