तीर-धनुष बेचने वाले मजदूर की बेटी अपनी मेहनत के दम पर बनी IAS ऑफिसर और रच दिया इतिहास
हर इंसान अपने जीवन में एक बड़ा मुकाम हासिल करना चाहता है परंतु अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए जिंदगी में बहुत मेहनत और संघर्ष करना पड़ता है। ज्यादातर लोग अपनी मंजिल हासिल करने के लिए खूब मेहनत करते हैं परंतु रास्ते में आने वाली कठिनाइयों के आगे हार मान जाते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो हर कठिनाई का सामना करते हुए लगातार मेहनत और कोशिश करते रहते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि उनको एक ना एक दिन कामयाबी जरूर मिलती है।
आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बाजार में तीर और धनुष बेचने वाले मजदूर की एक बेटी के बारे में बताने वाले हैं, जिसके जीवन में बहुत सी परेशानियां खड़ी हुईं परंतु इस लड़की ने अपनी मेहनत के दम पर अपनी मंजिल हासिल कर ली। मजदूर की बेटी ने खुद के दम पर अपना IAS अफसर बनने का सपना पूरा किया और इतिहास रच दिया।
आपको बता दें कि केरल का वायनाड एक आदिवासी इलाका है। यह इतना पिछड़ा इलाका है कि लोग यहां स्कूल और पढ़ाई लिखाई को जानते तक नहीं हैं। बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। यहां बच्चे जंगलों में रहकर माता-पिता के साथ या तो टोकरी, हथियार बनाने में सहायता करते हैं या मजदूरी करते हैं।
लेकिन इस इलाके में एक मनरेगा मजदूर भी थे, जिनकी बेटी ने गांव की पहली आईएएस अफसर बन इतिहास रच दिया है। जी हां, यह श्रीधन्या सुरेश हैं, जो गरीबी में पली-बढ़ी परंतु अपने बुलंद हौसलों से इन्होंने अपनी मंजिल हासिल की। तो चलिए पढ़ते हैं IAS सक्सेज स्टोरी में श्रीधन्या सुरेश के संघर्ष की कहानी…
भले ही श्रीधन्या सुरेश आज आईएएस अधिकारी बन चुकी हैं परंतु उन्होंने अपने जीवन में खूब मेहनत और संघर्ष किया है। श्रीधन्या सुरेश के पिता बाजार में धनुष और तीर बेचा करते थे और उन्होंने अपने इसी काम से दिन-रात मेहनत करके अपनी बेटी को पढ़ाया-लिखाया। आज वह पिता के आशीर्वाद और सच्ची लगन से ही इस मुकाम तक पहुंच सकी हैं।
श्रीधन्या का बचपन गरीबी में व्यतीत हुआ है। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी परंतु पैसों की कमी को उन्होंने अपने सपनों के बीच में आने नहीं दिया। उनके घर में उनके पिताजी कमाने वाले थे। लेकिन श्रीधन्या ने सच्ची लगन से मेहनत की। पढ़ाई के लिए उन्होंने कलर्क और हॉस्टल वॉर्डन का भी काम किया।
आपको बता दें कि श्रीधन्या ने सेंट जोसेफ कॉलेज से जूलॉजी में स्नातक की पढ़ाई करने के लिए कोझीकोड का रुख किया था और कालीकट विश्वविद्यालय से पोस्ट-ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद श्रीधन्या केरल में ही अनुसूचित जनजाति विकास में क्लर्क के रूप में कार्य करने लगी थीं। कुछ समय वायनाड में आदिवासी हॉस्टल की वार्डन भी रहीं। एक आईएएस ऑफिसर का रुतबा देखने के बाद श्रीधन्या काफी प्रभावित हुई थीं और तब से ही उन्होंने ठान लिया कि वह भी अफसर बनेंगी।
श्रीधन्या ने अपना लक्ष्य तय कर लिया। कॉलेज के दिनों से ही उनकी सिविल सेवा में दिलचस्पी हो गई। उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए खूब मेहनत की और आखिर में वह दिन आया जब श्रीधन्या ने सिविल सेवा परीक्षा में 2018 में 410 वीं रैंक हासिल की। परीक्षा पास करने के बाद जब उनका नाम इंटरव्यू में आया तो उनके सामने एक समस्या और खड़ी हो गई जो उनके जीवन का सबसे कठिन वक्त रहा था।
दरअसल, उन्हें दिल्ली जाना था, पर उनके पास पैसे नहीं थे। श्रीधन्या बताती हैं कि उस समय मेरे परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं केरल से दिल्ली तक की यात्रा खर्च वहन कर सकूं। जब यह बात उनके दोस्तों को मालूम हुई तो उन्होंने आपस में चंदा इकट्ठा करके चालीस हजार रुपए का इंतजाम किया। जिसके बाद वह दिल्ली पहुंच पाईं। बता दें कि श्रीधन्या ने तीसरे प्रयास में यह सफलता हासिल की थी।
बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनके पिताजी का भी बहुत बड़ा योगदान है। जिनका घर भी ठीक से नहीं बना हो, जिसके पास किराया देने तक के पैसे ना हो, वह लड़की अपने मेहनत और लगन से आज आईएएस अधिकारी बनी है।