मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन पर आज भी एक सवाल ऐसा है जिसे बार बार पूछकर लोग उनकी मर्यादा और विचार पर सवाल उठाते हैं क्योंकि अपने पूरे जीवन भर में मर्यादा का निर्वाह करने वाले भगवान श्री राम ने एक बहतु गलती कर दी थी जिसके कारण कोई भी अधर्मी व्यक्ति भी उनपर उंगली उठाने में शर्मिंदगी महसूस नहीं करता है |
दरअसल भगवान श्री राम की जब उन्होंने अपनी पत्नी सीता को सिर्फ एक एक धोबी के उनके चरित्र पर सवाल उठाने की वजा से त्याग दिया और उस वक्त माता सीता गर्भवती भी थी और इस अवस्था में भी उन्हें अपने पति और घर से दूर जंगले में जाकर रहना पड़ा लेकिन इतनी बड़ी बात बेवजह तो हो नहीं सकती इसीलिए हमारे पुराणों में बताया गया है की क्यों माता सीता को श्री राम के द्वारा त्याग दिया गया और उन्हें जंगले में जाकर रहना इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जो आज हम आपको बताने वाले हैएक बार जब मिथिला नगरी में जनक नाम के एक राजा हुआ करते थे और वो वहाँ पर राज्य करते थे |
राजा कि संतान नहीं थी, एक बार वे यज्ञ के लिए खेत जोत रहे थे, उसी समय धरती में हल से बनी एक रेखा में एक कन्या का प्रादुर्भाव हुआ, वो कन्या बेहद ही खूबसूरत थी और उसे देखकर राजा जनक बहुत ही खुश हुए और उस कन्या को अपने पास रख लिए और , राजा ने उस कन्या का नाम रखा था सीता.
एक दिन की बात है जब सीता अपनी सखियों के साथ बाग़ में खेल रही थी उसी वक्त उन्हें वहाँ एक शुक पक्षी का जोड़ा दिखा, जो कि एक पर्वत चोटी पर बैठा एक राजा और रानी का किस्सा सुना रहा था और वो किस्सा भगवान श्री राम और माँ सीता के जीवन का था. वो दोनों शुक के जोड़े आपस में बात कर रहे थे कि पृथ्वी पर एक विख्यात राजा होंगे जिनका नाम राम होगा वो बहुत सुन्दर होंगे उनकी एक बहुत खूबसूरत महारानी होंगी जिनका नाम सीता होगा वो दोनों शुक के जोड़ा श्री राम जानकी कि महिमा का वर्णन कर रहे थाजब माँ सीता ने उनकी बातें सुनीं और उन्हें ऐसा लगा कि ये दोनों पक्षी तो उन्हीं के जीवन के बारे में बातें कर रहे हैं, और मानव स्वाभाववश अपने भविष्य से जुडी बाते जानने की इक्षा सीता के मन में जग गयी इसीलिए उन्होंने अपनी सखियों से कहा की उस पक्षी जोड़े को पकड़कर मेरे पास ले आओ
तब माँ सीता कि सखियाँ उस पर्वत के पास गयीं और उस पक्षी जोड़े को पकड़ लायीं, सीता जी ने उस पक्षी जोड़े से कहा तुम दोनों बहुत सुन्दर और प्यारे हो, डरो नहीं, ये बताओ तुम कौन हो और कहाँ से आये हो, जिनकी तुम बात कर रहे हो वो राम और सीता कौन हैं और तुम दोनों को उनके बारे में जानकारी कैसे मिली, माँ सीता व्याकुलतावश उन दोनों से पूछने लगीं माता सीता के ऐसा पूछने पर उन दोनों पक्षी के जोड़े ने उन्हें बताया कि वाल्मीकि नाम के एक बहुत बड़े महर्षि हैं हम उनके आश्रम में ही निवास करते है और महर्षि वाल्मीकि ने रामायण नामक का एक ग्रन्थ की रचना की है, जो की सुनने के बाद मन को बहुत ही शांति देता है, और उन्होंने अपने शिष्यों को उस ग्रन्थ का अध्ययन भी कराया है और इसीलिए हम भी वही रहते हैं तो हमने भी उस ग्रन्थ को पूरा सुना है तब उन्होंने माता सीता को पूरी कथा बताई की कैसे श्री राम की शादी माँ सीता से होगी और भी बहुत कुछ
माँ सीता को ये बातें बताकर अब दोनों शुक पक्षियों ने जाने कि बात कहने लगे, लेकिन माता सीता को वो भा गए थे, और माता सीता के मन में अभी और भी सवाल उठ रहे थे, उ इसीलिए न्होंने उन पक्षियों से और सवाल किये और श्री राम के बारे में और अधिक जानना चाहा.उनके इस तरह से उत्सुकता को देखकर वो शुकी समझ गयी कि यह स्त्री स्वयं सीता है, उन्हें पहचान कर वह प्रेम पूर्वक श्री रामचंद्र के बारे में बताने लगी. उसने श्री रामचन्द्र का बहुत खूबसूरत वर्णन किया. और फिर उनसे पूछा कि हे देवी तुम कौन हो?
पक्षियों कि बातें सुनने के बाद सीता जी ने अपने बारे में बताया और कहा कि मैं राजा जनक की पुत्री जानकी हूँ, लेकिन उन्होंने उन पक्षियों से कहा अब जबतक स्वयं श्री राम आकर मेरा वरण नहीं करते तब तक मैं तुम दोनों को यहाँ से नहीं जाने दूंगी. तुम दोनों मेरे साथ मेरे घर चलकर सुख पूर्वक रहो.इसपर शुकी ने कहा की हम पक्षी हैं जंगल में निवास करने वाले जीव हैं इसीलिए हमे जाने दो हम खुले आकाश में उड़ना पसंद करते है ना की चार दिवारी में कैद होकर रहना इसीलिए , हम तुम्हारे घर पर सुखी नहीं रह पाएंगे, और इस समय तो मैं गर्भिणी हूँ और मुझे अपने स्थान पर जाकर बच्चे पैदा करने हैं और हो सकेगा तो मै अपने बच्चे को जन्म देने के बाद तुम्हारे पास आ जाउंगी.
लेकिन सीता जी ने उन्हें नहीं छोड़ा इसपर शुक पक्षी ने भी उनसे प्रार्थना की और कहा कि मेरी भार्या को छोड़ दो यह गर्भिणी है जब यह बच्चों को जन्म दे लेगी तब मैं इसे आपके पास स्वयं लूँगा, लेकिन माता सीता ने मोहवश उसकी बात नहीं मणि अंत में जब सारे प्रयासों के बाद भी जब सीता जी ने उनको नहीं छोड़ा तब निराश शुकी ने कहा कि योगी लोग सही कहते हैं, किसी से कुछ कुछ नहीं कहना चाहिए, मौन होकर रहना चाहिए, उन्मत्त प्राणी अपने वचनरूपी दोष के कारण ही बन्धन में पड़ता है. अगर हम यहाँ पर्वत पर बैठकर बात नहीं कर रहे होते तो शायद ऐसी स्थिति नहीं आती. इसलिए मौन रहना ही ज्यादा अच्छा है.