करोड़पति ज्वैलर ने गरीबों को दान की 11 करोड़ की संपत्ति, अब जीवनभर नहीं जाएंगे घर, जानिए क्या है मामला
पैसा एक ऐसी चीज है, जिसके पीछे दुनिया पागल है। आज के समय में लोग पैसा कमाने के लिए दिन-रात मेहनत में लगे रहते हैं। ज्यादातर लोगों का उद्देश्य धन-दौलत कमाना रहता है लेकिन आज भी कुछ ऐसे लोग दुनिया में मौजूद हैं, जो शांति और अध्यात्म की चाह में सांसारिक जीवन को त्याग कर साधु या भिक्षु बन जाते हैं। कुछ ऐसी ही एक कहानी मध्यप्रदेश के बालाघाट से सामने आई है, जहां पर एक करोड़पति ज्वैलर राकेश सुराणा, पत्नी लीना और 11 साल के बेटे के साथ पूरे परिवार ने एक झटके में 11 करोड़ रुपए की संपत्ति दान कर दीक्षा लेने का फैसला किया है।
आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के कारोबारी राकेश सुराणा ने संयम व्रत लेने से पूर्व अपनी करीब 11 करोड़ रुपए की संपत्ति जयपुर एवं श्री नमिऊण पार्श्वनाथ तीर्थ के लिए दान कर दी, फिर जयपुर में आयोजित समारोह में जैन मुनि बने हैं। बता दें कि राकेश सुराणा बालघाट के नामी सर्राफा कारोबारी हैं। वहां पर सोने-चांदी के कारोबार से जुड़े थे। कभी छोटी सी दुकान से ज्वेलरी का कारोबार शुरू करने वाले राकेश ने अपने दिवंगत बड़े भाई की प्रेरणा, अपनी कड़ी मेहनत और अथक प्रयासों से इस क्षेत्र में धन और शोहरत दोनों कमाई।
किसी तरह के विलासिता के साधन का नहीं करेंगे उपयोग
राकेश सुराणा के साथ ही दीक्षा लेने वाली उनकी पत्नी लीना सुराणा अमेरिका में पढ़ीं हैं। राकेश सुराणा दीक्षा के बाद अब श्री यशोवर्धनजी मसा के नाम से जाने जाएंगे। वहीं लीना सुराना श्री संवररुचि जी मसा व बेटे अमय सुराणा बाल साधु श्रीजिनवर्धनजी मसा के नाम से जाने जाएंगे। अब यह जीवनभर अपने घर वापस नहीं जाएंगे और ना ही किसी प्रकार के विलासिता के साधनों का इस्तेमाल करेंगे। कठिन तप और संयम के साथ जीवनयापन करेंगे। साथ ही जीवनभर पैदल ही विचरण करेंगे।
बालाघाट से जयपुर पहुंचे 300 से ज्यादा श्रद्धालु
आपको बता दें कि संयम व्रत लेने से पूर्व बालाघाट के कारोबारी राकेश सुराणा ने अपनी 11 करोड़ की संपत्ति गौशाला और धार्मिक संस्थाओं को दान कर दी। जयपुर में हुए दीक्षा समारोह में बालाघाट से 300 से ज्यादा श्रद्धालु शामिल हुए। दीक्षा समारोह से पहले उनका वरघोड़ा निकाला गया। फिर श्रेष्ठ गुरुजनों की निश्रा में संपूर्ण संस्कार पूर्ण कराए गए।
इससे पहले बालाघाट में कारोबारी राकेश सुराना ने अपनी 11 करोड़ की संपत्ति गोशाला और धार्मिक संस्थाओं को दान कर दी। उन्होंने पत्नी लीना और 11 साल के बेटे अमय के साथ सांसारिक जीवन को त्याग कर संयम पथ पर चलने का फैसला किया। शहर के लोगों ने शोभायात्रा निकाल कर विदाई दी।
2015 में हृदय परिवर्तन के बाद लिया निर्णय
राकेश सुराणा ने मीडिया से बातचीत के दौरान यह बताया कि उन्हें धर्म, अध्यात्म और आत्म स्वरूप को पहचानने की प्रेरणा गुरु महेंद्र सागर महाराज और मनीष सागर महाराज के प्रवचनों और उनके सानिध्य में रहते हुए मिली। वहीं उनकी पत्नी ने बचपन में ही संयम पथ पर जाने की इच्छा जाहिर की थी। बेटे अमय महज 4 वर्ष की उम्र में ही संयम के पथ पर जाने का मन बना चुके थे। हालांकि बेहद कम उम्र होने की वजह से अमय को 7 साल का इंतजार करना पड़ा। 2015 में हृदय परिवर्तन के बाद उन्होंने परिवार सहित दीक्षा लेने का फैसला किया। अब जयपुर में सुराणा परिवार ने अपनी वर्षों की जमा पूंजी दान कर अध्यात्म की तरफ रुख कर लिया।