श्री राम को पैरों में कंकर न चुभें, इसलिए शिव जी ने किया ऐसा काम, पढ़िए ये रोचक कहानी
सावन का महीना भगवान शिव जी का प्रिय महीना माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान की गई भगवान शिवजी की पूजा भक्तों को कई गुना फल देती है। ऐसी भी मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव जी को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। सावन के महीने में शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है। सभी भक्त, भगवान शिव जी की पूजा अर्चना और जलाभिषेक करके उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।
वहीं सावन में श्री राम जी की पूजा करने का भी अत्यधिक महत्व है। इतना ही नहीं बल्कि ऐसा कहा जाता है कि सावन में श्री राम की पूजा करने से भगवान शिव जी अत्यंत प्रसन्न होते हैं। आपको बता दें कि रामचरित मानस में कई ऐसे दृश्य बताए गए हैं जब दोनों ही प्रभु एक-दूसरे की भक्ति करते नजर आते हैं। आज हम आपको रामकथा के अध्याय का एक ऐसा ही रोचक किस्सा बताने वाले हैं।
भगवान राम के पैरों को कंकर न चुभें, इसलिए शंकर जी ने किया ये काम
जब भगवान श्री राम जी 14 वर्ष के वनवास काल के दौरान जाबालि ऋषि से मिलने गुप्त रूप से नर्मदा तट पर आए, तो उस समय वह स्थान पर्वतों से घिरा हुआ था। भगवान शिव जी भी रास्ते में उनसे मिलने के लिए आतुर थे। परंतु भगवान और भक्त के बीच वह नहीं आ रहे थे। भगवान श्री राम जी के पैरों को कंकर ना चुभें, इसलिए शंकर जी ने छोटे-छोटे कंकरों को गोलाकार कर दिया था। इसी वजह से बोला जाता है कंकर-कंकर में शंकर।
जब भगवान श्री राम जी रेवा तट पर पहुंच गए, तो गुफा से नर्मदा का जल बह रहा था। यहीं पर प्रभु राम रुके और बालू एकत्र कर शिवलिंग बनाया और एक माह तक उसका नर्मदा के जल से अभिषेक करते रहे। आखिरी दिन भगवान शिव जी लिंग के स्थान पर स्वयं विराजित हो गए और भगवान राम शंकर का मिलन हुआ।
एक की पूजा से दूसरे होते हैं प्रसन्न
आपको बता दें कि रामचरित मानस में कई ऐसे दृष्टांत हैं, जिनमें दोनों प्रभु एक-दूसरे की आराधना करते हुए नजर आते हैं। प्रभु श्री राम जी जिस समय लंका पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रहे थे और समुद्र पर सेतु का काम चल रहा था, उस समय भी प्रभु राम के मन में भोलेनाथ की भक्ति हिलोरें मारने लगे। मानस के अनुसार, प्रभु राम ने कहा यहां की भूमि परम रमणीय और उत्तम है। इसकी असीम महिमा वर्णन नहीं की जा सकती। मैं यहां शिवजी की स्थापना करूंगा, मेरे हृदय में यह महान संकल्प है।
परम रम्य उत्तम यह धरनी ।
महिमा अमित जाइ नहिं बरनी ।।
करिहउँ इहाँ संभु थापना ।
मोरे हृदयँ परम कलपना ।।
इसके पश्चात प्रभु राम ने यहां शिवलिंग की स्थापना की, जिसका नाम रामेश्वर हुआ। श्री राम जी ने रामेश्वर नाम की व्याख्या करते हुए कहा कि जो राम के ईश्वर हैं वही रामेश्वर यानी शिव हैं। वहीं दूसरी ओर भगवान शंकर जी ने रामेश्वर नाम की व्याख्या करते हुए कहा कि राम जिनके ईश्वर वह रामेश्वर जब दोनों ही भगवान एक-दूसरे को अपना स्वामी मानते हैं तो फिर एक ही पूजा से दूसरे का प्रसन्न होना स्वाभाविक है।
भगवान शंकर जी केवल अपने आराध्य राम की सेवा के लिए ही हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए और तीनों लोकों में उनसे बड़ा राम भक्त दूसरा नहीं है, यह साबित कर दिया। वजह से सावन में अगर भोलेनाथ को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनके साथ प्रभु राम यानी उनके आराध्य किसी न किसी रूप में जोड़ दीजिए। भगवान महेश्वर जरूर प्रसन्न हो जाएंगे।
महादेव और श्री राम दोनों अभिन्न हैं
यह एक बात को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि महादेव और श्रीराम दोनों अभिन्न हैं। इसी वजह से किसी एक की पूजा और दूसरे का निरादर कतई संभव नहीं है। अगर कोई श्री राम जी का द्रोही है लेकिन शिव उपासक है या फिर राम उपासक है लेकिन शिव द्रोही है ऐसे में उसको उपासना का फल तो बहुत दूर है वह नरक में जाने की बात बताई गई है।
संकरप्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास॥
अगर सावन के पवित्र और पावन महीने में शिव मंत्र “ॐ नमः शिवाय” एवं “श्री राम जय राम जय जय राम” मंत्र का उच्चारण करते हुए शिव को जल अर्पित किया जाए, तो इससे शंकर जी अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं।