पति-पत्नी का रिश्ता पवित्र होने के साथ-साथ सात जन्मों का रिश्ता माना जाता है। पति-पत्नी का प्यार सागर जितना विशाल होता है, तो कुएं की गहराई जितना गहरा भी। आप सभी लोगों ने बिहार के “दशरथ मांझी” की कहानी तो सुनी ही होगी। फिल्म के माध्यम से मांझी की कहानी दुनिया भर के लोगों तक पहुंचाई गई। जब पत्नी की मृत्यु हो गई तो मांझी को पत्नी की मौत ने इतना द्रवित कर दिया कि उसने अकेले ही पहाड़ काटकर रास्ता बनाया और माउंटेन मैन बन गया।
बिहार के दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी की याद में हथोड़ा और छैनी से 25 फीट ऊंचे पहाड़ का सीना चीरकर 360 फीट लंबे और 30 फीट चौड़ी सड़क बना दी थी। इसी बीच मध्य प्रदेश से भी एक ऐसे ही दशरथ मांझी की कहानी सामने आई है, जहां पर एक शख्स ने पहाड़ का सीना चीर कर अपनी पत्नी के लिए कुआं खोद दिया।
2 किलोमीटर चलकर पानी लाने जाती थी पत्नी
आपको बता दें कि दशरथ मांझी ने अपने गांव गहलौर में पहाड़ खोदकर रास्ता बनाया था, जिसके बाद उन पर नवाजुद्दीन सिद्दीकी के लीड रोल वाली “दशरथ मांझी- द माउंटेन मैन” के नाम से फिल्म भी बनी थी। अब पत्नी से प्रेम में पराक्रम का ऐसा ही मामला सीधी जिले से सामने आया है, जहां पर एक शख्स ने पहाड़ का सीना चीर कर कुआँ खोद दिया। इस शख्स की कहानी भी दशरथ मांझी जैसी ही रोचक है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिला सीधी, मध्य प्रदेश के हरि सिंह की पत्नी सियावती 2 किलोमीटर चलकर पानी लाने के लिए जाया करती थी। हरि सिंह से अपनी पत्नी की परेशानी नहीं देखी जाती थी। हमेशा ही उसे अपनी पत्नी की चिंता लगी रहती थी, जिसके बाद हरि सिंह ने खुद अपनी पत्नी के लिए पहाड़ काटकर कुआं खोदने का फैसला ले लिया।
3 साल में खोदा 20 फीट चौड़ा, 60 फीट गहरा कुआं
हरि सिंह ने मीडिया से बातचीत के दौरान यह बताया कि उन्होंने बीते 3 साल में 20 फीट चौड़ा और 60 फीट गहरा कुआं खोद दिया, जहां थोड़ा सा पानी भी निकल आया। खुदाई अभी भी जारी है। ऐसे में वहां और ज्यादा पानी मिलने की उम्मीद है। हरि सिंह ने बताया कि शुरू में यह काम कठिन लग रहा था, क्योंकि पत्थर में कुआं खोदना था। मिट्टी की परत बिल्कुल भी नहीं थी। ऐसे में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन मन मार कर बैठने की बजाय मन में ठान लिया। संकल्प लिया कि दुनिया में कोई भी कार्य असंभव नहीं है।
बिना किसी की मदद से खुद असंभव को कर दिया संभव
हरि सिंह ने यह बताया कि मेरे पास 50 डिसमिल जमीन का पट्टा है। इसके बावजूद पंचायत कर्मी गुमराह करने का प्रयास करते हैं। उन्होंने बताया कि कई बार पंचायत कर्मियों से सहायता मांगी, लेकिन किसी की मदद नहीं मिली। आखिर में उन्होंने कुआं खोदने के इस असंभव कार्य को संभव कर दिया। हरि सिंह ने बताया कि जब तक इस्तेमाल के लिए पूरा पानी नहीं मिल जाता, वह खुदाई करते रहेंगे। हरि सिंह की यह कहानी भी दशरथ मांझी से कम नहीं है, इसलिए लोग उन्हें सीधी के दशरथ मांझी के नाम से भी पुकारने लगे हैं।
मजदूरी करके घर चलाते हैं हरि सिंह
आपको बता दें कि हरि सिंह मजदूरी करके अपना घर चलाते हैं। बाकी जब उनके पास खाली समय होता है, तो वह कुआं खोदने का काम करते हैं। हालांकि, उन्हें इस बात का रंज है कि उन्हें शासन-प्रशासन से कोई मदद नहीं मिल पाई है।