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बचपन में चल बसी मां, पिता ने करवाया बाल विवाह, भावुक कर देगी 17 साल से कंडक्टरी कर रही सरोज की कहानी

समाज महिलाओं को एक अलग ही नजरिए से देखता है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को समाज कमजोर मानता है। महिलाओं पर कई पाबंदियां लगाई जाती हैं लेकिन जैसे-जैसे समय बदल रहा है, वैसे-वैसे ज्यादातर लोगों की भी सोच बदल रही है। वर्तमान समय में महिलाएं पुरुषों से बिल्कुल भी पीछे नहीं हैं। सभी महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। आप सभी लोगों ने महिला बस ड्राइवर और कंडक्टर के बारे में तो सुना ही होगा लेकिन आज हम आपको इस लेख के माध्यम से जिस महिला बस कंडक्टर की कहानी बताने वाले हैं उसके बारे में जानकर आप भावुक हो जाएंगे। इस महिला कंडक्टर की कहानी सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है।

आज हम आपको जिस महिला बस कंडक्टर की कहानी बताने वाले हैं उनका नाम सरोज है। सरोज ने अपने जीवन में कई परेशानियां देखी है परंतु सभी परेशानियों को हराकर यह 17 सालों से बस में कंडक्टर की नौकरी कर रही हैं। इन्होंने इस काम की जिम्मेदारी बखूबी तरीके से निभाया और एक नई मिसाल पेश की है। आपको बता दें कि सरोज डिंडौरी जिले में पिछले 17 वर्षों से बुकिंग एजेंट के रूप में काम कर रही हैं। यह अपने पति के पास में नहीं रहती, यह मायके में रहकर इतने सालों से खुद के दम पर काम कर रही हैं।

2 साल की उम्र में मां चल बसी, पिता ने शराबी से करवा दिया विवाह

सरोज के जीवन की कहानी बेहद संघर्षपूर्ण है। जब उनकी उम्र महज 2 वर्ष की थी तब इनकी माता का देहांत हो गया था। मां के जाने के बाद सरोज के पिता ने ही इनको पाला। बचपन में ही मां का साया सिर से उठ जाने की वजह से सरोज के जीवन में बहुत सी परेशानियां उत्पन्न हुई। जब इनकी उम्र 16 वर्ष की हुई तब उनके पिताजी को सरोज के विवाह की चिंता होने लगी। सरोज के पिताजी ने महज 16 साल की उम्र में ही एक शराबी से इनकी शादी करवा दी थी। शराबी पति मिलने की वजह से सरोज की सारी उम्मीदें टूट गई। शराबी पति की हरकतों की वजह से यह काफी परेशान रहने लगी थीं। आखिर में यह इतनी तंग आ गईं कि शादी के कुछ दिन बाद ही इन्होंने अपने पति का साथ छोड़ने का फैसला ले लिया और यह उसे छोड़कर अपने मायके आ गई थीं।

हिम्मत नहीं हारी, खोली अंडे की दुकान

जब सरोज अपने पति का साथ छोड़ कर आ गई तो इनकी सबसे बड़ी चिंता काम था क्योंकि जिंदगी व्यतीत करने के लिए कोई ना कोई काम-धंधा करना बहुत ही जरूरी है। इस कठिन परिस्थिति में भी सरोज ने अपनी हिम्मत नहीं हारी थी। समाज का सामना करते हुए इन्होंने बस स्टैंड पर अंडे की दुकान खोली। थोड़े दिनों तक इन्होंने अपनी दुकान चलाई परंतु इनकी दुकान नहीं चली। आखिर में सरोज ने यह फैसला ले लिया कि वह यात्री बसों में बुकिंग एजेंट बनेंगी। सरोज ने समाज की परवाह ना करते हुए यात्री बसों में कंडक्टर का काम शुरू कर दिया। सरोज को बसों में बुकिंग एजेंट का काम बेहतर लगा और ये इस काम को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाने लगीं। आपको बता दें कि 17 वर्षों बाद भी यह अपने काम को बखूबी तरीके से निभा रही हैं। रोजाना 300-400 कमा कर यह अपने परिवार का गुजारा चलाती हैं।

आपको बता दें कि सरोज को सरकार से किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिली है यह इतने वर्षों से खुद के दम पर ही काम कर रही हैं।

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