‘किन्नर’ पैदा हुई थी मनीष, माँ-बाप ने छोड़ा साथ तो अब खुद बेसहारा बच्चों के लिए बनी सहारा
आज भी इस दुनिया में इंसानियत जिंदा है इस दुनिया में कई इंसान ऐसे हैं जो चाहते है कि जो खुशी उन्हें नहीं मिली वह वह खुशी दूसरों को दे. कुछ ऐसी ही सोच छत्तीसगढ़ के कंकर में रहने वाले मनीष की है. बता दे मनीष का खुद का जीवन बड़ी ही मुसीबतों से भरा हुआ बिता. लेकिन मनीष दूसरों की जिंदगी को खुशियों से भरने की चाहत रखते थे. मनीष के माता-पिता को जब इस बात की जानकारी हुई कि उनका बेटा एक किन्नर है तो उन्होंने अपने बेटे का त्याग कर दिया और आज वही मनीष कई बेसहारा और अनाथ बच्चों की जिंदगी संवारने में लगा हुआ है.
मनीष का कहना है कि जब उनके जन्म के बाद उनके माता-पिता को इस बात की जानकारी हुई कि उनका बेटा एक किन्नर है. तो उसके माता-पिता ने उन्हें अपनाने से साफ मना कर दिया. ऐसे में मनीष का पालन पोषण एक किन्नर ने किया हालांकि आज भी मनीष अपने परिवार के बीच में वापिस जाना चाहते हैं लेकिन उनके परिवार वाले उन को अपनाने से आज भी साफ मना कर देते हैं. मनीष का कहना है कि वह जानता है कि अपनों के बिना रहने का दर्द क्या होता है. इसलिए उसको जब भी सड़क पर कोई बेसहारा और अनाथ बच्चा दिखाई देता है, तो वह उसको उठाकर अपने साथ ले आती है और खुद उसका पालन-पोषण करते हैं.
जानकारी के लिए बता दें इंसानियत की मिसाल यह किन्नर अभी तक 9 बच्चों को गोद ले चुका है. उनके इन बच्चों में कई लड़कियां भी शामिल है. मनीष अपनी टीम के साथ मिलकर इन बच्चों की पढ़ाई लिखाई और पालन-पोषण का पूरा ध्यान रखते हैं. वही मनीष ने एक घटना का खुलासा करते हुए कहा कि एक पढ़ी-लिखी और संपन्न परिवार की महिला अपने बच्चे को कोख में मारने के लिए गुड़ाखू खा लेती है. इसी दौरान मनीष अपने टीम के साथ कहीं से बधाई मांग कर लौट रहे होते हैं तो उनकी नजर दर्द से तड़प रही इस महिला पर पड़ती है जिसके बाद वह इस महिला को उठाकर अस्पताल में ले जाते है लेकिन अस्पताल वाले इस महिला की डिलीवरी कराने से साफ मना कर देते है. जिसके बाद मनीष इस महिला को अपने साथ ले आते हैं. और प्राइवेट डॉक्टर से इसकी डिलीवरी कराते हैं. मनीष को पता चलता है कि यह महिला बेटी नहीं चाहती थी जिसके चलते मनीष इस बेटी को अपने पास रख लेते हैं.
साल 2011 में शिक्षा और जाति के आधार पर जो जनगणना हुई थी उसमें पाया गया था कि भारत में लगभग 487803 किन्नर है जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के तौर पर मान्यता दे दी थी. सविधान की मानें तो अनुच्छेद 14 के अनुसार मानव अधिकारों को पहली बार सुरक्षित किया गया जिसके बाद किन्नरों के लिए कई दरवाजे खुल गए. इसके तहत साल 2017 में पहली किन्नर जज बनी. और उसके बाद पहली किन्नर पुलिस अधिकारी भी बनी. और इसी के चलते छत्तीसगढ़ सरकार ने 2017 में किन्नरों के लिए पुलिस भर्ती निकाली थी.
सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त होने के बाद भी आज भी हमारे समाज में किन्नरों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है. हालांकि समाज के ज्यादातर शुभ कामों में किन्नर नाच गाकर बधाइयां देते हैं लेकिन फिर भी लोग किन्नरों को देखकर मुंह मोड़ लेते हैं और अधिकतर लोग तो किन्नरों को देखकर अपने घरों के दरवाजे भी बंद कर लेते हैं. इस मामले में मनीष का कहना है कि मेरे लिए लोगों का मिला जुला रवैया सामने आया है जहां अधिकतर लोग मुझे खुशी के मौके पर खुश हो कर बुलाते हैं वहीं कुछ लोगों का कहना है कि मजदूरी करके खाओ मनीष का कहना है कि वह अनाथ बच्चों के लिए का आश्रम खोलना चाहते हैं. और इस मामले पर वह कई बार नेता और उच्च अधिकारियों से बात कर चुके हैं.