जब रजवाड़े थे तब वांकानेर के राज परिवार की राधिकाराजे ने बड़ौदा के महाराजा से शादी रचाई थी. राधिकाराजे के पिता वांकानेर के राजकुमार डॉक्टर रंजीत सिंह जी थे. रंजीत सिंह जी इस राज परिवार के पहले ऐसे व्यक्ति थे जो राजघराने का खिताब छोड़ आईएएस अधिकारी बने. राधिकाराजे ने कहा, ‘1984 में, जब भोपाल गैस लीक हुई, उस समय मेरे पिता वहां कमिश्नर थे. उस समय मैं 6 साल की थी. मेरे पिता पूरी निडरता के साथ अपनी ड्यूटी कर रहे थे. उस रात मैंने सीखा कि आप बिना उंगली उठाए चीजों के ठीक होने की आस नहीं कर सकते.’ इस घटना के बाद राधिकाराजे का परिवार दिल्ली आ गया. महारानी राधिकाराजे अपनी जिंदगी को बहुत ही सिम्पल कहती हैं. वो कहती हैं, ‘मैं डीटीसी बस में स्कूल गई और मेरी मां अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी.’
उन्होंने बताया कि, ‘हम लोग बेहद आम जिंदगी जीते थे जब मैं गर्मियों की छुट्टियों के बीच वांकानेर जाती थी तो वहां लोगों से मिलने वाला आदर-सत्कार मुझे बहुत पसंद था. उन्हें शुरू से अपने पैरों पर खड़े होने का मन थी. हिस्ट्री में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने नौकरी ढूंढी. दरअसल, ’20 साल की उम्र में उन्हें इंडियन एक्सप्रेस में राइटर की नौकरी मिली. इसके साथ उन्होंने मास्टर डिग्री भी की. वे अपने परिवार में पहली ऐसी लेडी थी जो बाहर नौकरी के लिए गई थी. उनके ज्यादातर चचेरे भाइयों की शादी 21 साल की उम्र में हुई थी.’
राधिकाराजे तीन साल तक एक पत्रकार के तौर पर रही. इसके बाद उनके माता-पिता ने उनके लिए दूल्हा ढूंढा. राधिकाराजे बताती हैं, ‘बड़ौदा के राजकुमार समरजीत के विचार बाकी लोगों से अलग थे. जब मैंने उनसे बोला कि मैं आगे पढ़ना चाहती हूं तो उन्होंने मुझे इसके लिए बढ़ावा दिया.’
राधिकाराजे ने कहा शादी करने और बड़ौदा के लक्ष्मी विलास पैलेस में जाने के बाद उन्हें अपनी असली पहचान मिल गई., ‘बड़ौदा महल की दीवारों पर राजा रवि वर्मा की पेंटिग्स थीं. मैंने सोचा कि क्यों ना इन पेंटिंग्स से प्रेरित बुनाई की पुरानी तकनीकों को नया करें. इस तरह, मैं स्थानीय बुनकरों को भी मजबूत बना पाती. मैंने अपने सास के साथ मिल काम शुरू किया की जो बहुत सफल रहा. मुंबई में हमारी पहली प्रदर्शनी ही सारी सेल हो गई.’
आपको बता दें कि महारानी राधिकाराजे ने लॉकडाउन के समय उन कारीगरों की भी सहायता की जिनकी कमाई का माध्यम छूट गया था. उन्होंने कहा था, ‘मैंने और मेरी बहन ने गांवों को देखा और सोशल मीडिया पर इनके हालात के बारे में बताना शुरू किया. इसके बाद बड़ी संख्या में लोगों ने सहायता की पेशकश की. कुछ महीनों में, हम 700 से भी ज्यादा परिवारों की मदद करने में सक्षम हो गए थे.’
वहीं अंत में राधिकाराजे ने बताया, ‘कभी-कभी लोग खुद से ही मानते हैं कि महारानी होने के अर्थ सिर्फ ताज पहन कर रहना है, लेकिन असलियत इस चमक-धमक से दूर है. मैंने पारंपरिक रूढ़ियों को तोड़ दिया और अपनी सीमाएं खुद तय की. मैंने वही किया जिसकी आस लोगों को मुझसे नहीं थी. यही विरासत मैं अपनी बेटियों को दी ताकि वो अपने तरीके से अपनी जिंदगी जी पाए और किसी भी चीज का बिल्कुल भी अफसोस ना करें.’