हादसे में कटे दोनों पैर, 6 महीने बिस्तर पर रहें, अब रोज 35KM का सफर कर ड्यूटी करता है ये जवान
दुनिया में हर किसी इंसान के जीवन में कोई ना कोई मुश्किल जरूर उत्पन्न होती रहती है परंतु जो मुश्किल समय को पार कर लेता है उसका जीवन बेहद सरल हो जाता है। वैसे देखा जाए तो मुश्किल भी आदमी को देखकर असर दिखाती है, किसी को मजबूर तो किसी को मजबूत बनाती है। यह बात बिल्कुल ठीक है कि इंसान कठिन परिस्थिति का सामना करके ही मजबूत बनता है। आज हम आपको एक ऐसे पुलिस अफसर के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जिसने यह साबित कर दिखाया है कि मुश्किलों से हिम्मत के साथ मुकाबला किया जाए तो इंसान की मंजिल आसान हो जाती है। हम बात कर रहे हैं सिपाही अभिषेक निर्मलकर की, जो एंटी टेररिस्ट स्क्वाड ATS के हिस्सा हैं।
जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं पुलिस वालों का काम बहुत कठिन होता है और इनको बहुत सी चीजों का सतर्कता से ध्यान रखना पड़ता है। दिन-रात पुलिस हम सभी की सुरक्षा के लिए अलग-अलग स्थानों पर तैनात रहती है। रोजाना ही पुलिसकर्मियों को चोर, डकैतों से मुठभेड़ करना पड़ता है। कई बार तो यह घायल भी हो जाते हैं। इसके बावजूद भी पुलिस वाले अपनी जान को जोखिम में डालते हुए अपनी ड्यूटी निभाते हैं। पुलिस वालों के साथ कब क्या हादसा हो जाए, उसके बारे में बता पाना बहुत ही मुश्किल है। आपको बता दें कि एक हादसे की वजह से अभिषेक निर्मलकर के दोनों पैर कट गए लेकिन इनके अंदर देशभक्ति का जज्बा ऐसा है कि उन्होंने खुद को इतना मजबूत बनाया और कृत्रिम पैर से भी अपनी ड्यूटी नहीं भूले और उन्होंने मेहनत करके खुद को वापस खड़ा कर दिया।
आपको बता दें कि अभिषेक निर्मलकर रोजाना भिलाई से रायपुर ड्यूटी के लिए जाते हैं। जब एक रात अभिषेक दानापुर एक्सप्रेस से घर के लिए निकले तो उनके साथ एक हादसा हो गया। अभिषेक निर्मलकर ट्रेन के गेट पर खड़े थे। ट्रेन में भीड़ में धक्का-मुक्की हुई और वह अचानक से ही नीचे गिर गए। जब अभिषेक निर्मलकर की आंखें खुली तो उन्होंने खुद को हॉस्पिटल के बेड पर पाया। जब डॉक्टर ने उनको बताया कि उनका एक पैर हादसे की वजह से कट गया है और दूसरा पैर भी काटना पड़ेगा तो उनकी हिम्मत लगभग टूट ही गई थी।
अभिषेक निर्मलकर की इस मुश्किल घड़ी में उनका सहारा उनकी अर्धांगिनी उनकी पत्नी बनीं और बूढ़े बाप ने भी उनको सहारा दिया। उसके बाद इस जवान की असली मेहनत शुरू हुई थी। अभिषेक निर्मलकर ने कृत्रिम पैर से चलना शुरू किया। इस दौरान वह कई बार गिरे, लेकिन उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी। जितनी बार निचे गिरे उतनी बार खड़े भी हुए। उनके अंदर जज्बा देश के लिए वापस ड्यूटी पर जाने का था। आखिर में जब वह कृत्रिम पैर से अच्छी तरह चलने लगे तो उन्होंने ड्यूटी जॉइन कर ली। आपको बता दें कि उनके घर में उनकी डेढ़ साल की बेटी और 7 साल का बेटा है। वह अपने दोस्तों के साथ बाइक पर 35 किलोमीटर दूर काम पर जाते हैं। करीब 6 महीने तक बिस्तर पर रहने के बाद वह सफल हुए।