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गरीब परिवार की ये बेटी ISRO में बनी साइंटिस्ट, कड़ी मेहनत से कर दिखाया माँ का सपना पूरा

एक समय ऐसा था जब बेटियों को पैदा करने के समय 100 बार सोचना पड़ता था लेकिन आज के वर्तमान समय की बात की जाए तो बेटियां बेटों से भी कहीं गुना ज्यादा समझदार और मेहनती मानी जाती हैं. इतना ही नहीं बल्कि वह लड़कों के कंधों से कंधा मिलाकर भी चलने लगी है और दिन रात एक कर के मंजिल के शिखर तक पहुंच रही हैं. मॉडरन दौर में देखा जाए तो शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जहां पर बेटियों का दबदबा ना हो. क्योंकि अब बेटियां मां-बाप का नाम रोशन करने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही हैं और तमाम क्षेत्रों में अपना दबदबा कायम कर रही हैं. आज के इस पोस्ट में हम आपको एक ऐसी ही बेटी की सच्ची कहानी बता रहे हैं जिसने छोटे से गांव से निकलकर कामयाबी की बुलंदियों को छू लिया है और सब का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया है.

दरअसल छोटे से गांव से निकलकर इस बेटी ने आईएसआरओ(ISRO) जैसी बड़ी कंपनी में जूनियर साइंटिस्ट की नौकरी हासिल कर ली है. बता दें कि यह नौकरी पाना बहुत से लोगों का महज एक सपना बनकर रह जाता है क्योंकि यहां तक पहुंचना सच में कई पापड़ बेलने के सामान साबित होता है. लेकिन ऐसा कारनामा करने वाली पूर्वोत्तर राज्य की बेटी नाज़नीन यासमीन ने साबित कर दिखाया है कि कोई भी काम नामुमकिन नही है, जब आप सच्चे दिल से कोशिश करते हैं तो आप एक न एक दिन अपनी मंजिल को पा सकते हैं. आइए आपको बताते हैं नाज़नीन यासमीन की इस पूरी कहानी के बारे में.

आसाम से ताल्लुक रखती है यासमीन

जानकारी के लिए बता दें कि नाज़नीन यासमीन पूर्वोत्तर राज्य असम के नागाम इलाके से ताल्लुक रखती है जिन्होंने साल 2016 में यही के एक विश्वविद्यालय से एमटेक की डिग्री प्राप्त की थी. इससे पहले नाज़नीन गुवाहाटी विश्वविद्यालय से एनआईटी एस कॉलेज से बीटेक कर चुकी थी. लेकिन अब तक करने के बाद अब आखिरकार इनका सिलेक्शन इसरो में जूनियर साइंटिस्ट की पोस्ट में हो गया है. इस बारे में नाज़नीन का कहना है कि वह बचपन से ही साइंटिस्ट बनने का सपना देखती आई थी और उनकी माँ भी हमेशा उन्हें साइंटिस्ट बनता देखना चाहती थी. लेकिन अब आखिरकार उन्होंने अपनी मां के सपने को पूरा कर दिखाया है. नाज़नीन के अनुसार साल 2021 में उन्होंने इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन का एग्जाम दिया था और यहां पर उनको सक्सेस प्राप्त हुई. इसी वर्ष ही वह श्रीहरिकोटा में मौजूद इसरो के मुख्यालय में बतौर साइंटिस्ट शामिल हो गई.

मां बाप ने दिया पूरा साथ

गौरतलब है कि नाज़नीन के इस सफर में उनके मां-बाप ने भी उनका पूरा साथ दिया है. नाज़नीन के पिता का नाम अबुल कलाम आजाद है जो कि शिक्षक के रूप में काम करते हैं जबकि इनकी मां हाउसवाइफ है और घर के कामकाज को ही संभालती आई हैं. नाज़नीन की मां का नाम मंजिला बेगम है. अपनी सक्सेस का पूरा श्रेय नाज़नीन अपने मां-बाप को देती है क्योंकि उनके गांव में इंटरनेट जैसी सुविधा भी नहीं थी लेकिन उनके मां-बाप की बदौलत अब वह इस मुकाम पर पहुंच चुकी हैं जिसका सपना आज उनकी उम्र का हर व्यक्ति देखता है.

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