हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित चार युगों में से सबसे ज्यादा पवित्र युग सतयुग को माना गया है. माना जाता है की सतयुग में बहुत से लोग ऐसे हुए जो अपने उच्च विचारों, परंपराओं और सत्य वचन की वजह से आज भी जाने जाते हैं. ऐसे ही लोगों में रघुवंशी श्री राम और माता सीता भी थी. लेकिन श्री राम के पिता राजा दसरथ की मृत्यु बाद जब उन्हें पिंडदान प्रदान करने का समय आया तो श्री राम और लक्ष्मण ने नहीं बल्कि सीता जी ने किया था. cccc.
बता दें की की ये वाकया तब का है जब श्री राम अपनी पत्नी सीता माता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास काटने जंगल में गए थे. ये बात उनदिनों की है जब वो गया के फाल्गु नदी एक तट पर थे. असल में हुआ ये था की श्री राम ने वनवास के बाद उनके पिता राजा दसरथ की मौत होगयी थी और इसके पित्र्पक्ष का मुहूर्त था श्री राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ फल्गु नदी के तट पर थे. श्री राम ने अपने पिता का पिंडदान करने के लिए वहीँ पर पंडित को भी बुलवा लिया था लेकिन पूजन की सामग्री उनके पास पूरी नहीं थी इसलिए श्रीराम ने लक्ष्मण जी को पास के ही गावं से पूजा में लगने वाले जरूरी सामान लाने को भेज दिया था. आपको बता दें की लक्ष्मण जी जब पिंडदान के लिए जरूरी सामान लाने गए तो उन्हें काफी देर होगयी इसलिए उन्हें तलाशनें के लिए उनके पीछे श्री राम भी चले गए.
अब इधर श्री राम और लक्षम जी को लौटने में काफी देर होगयी और बार बार पंडित जी माता सीता से कहने लगे की पिंडदान का मुहूर्त बीता जा रहा है. चूँकि पिंडदान का मुहूर्त वास्तव में बीता जा रहा था इसलिए मात सीता ने पंडित जी से कहा की आप पूजन विधि शुरू कर दें तब तक वो दोनों आजायेंगे और अगर नहीं आयें तो वो खुद पिंडदान कर देंगी. आखिरकार सारी पूजन विधि समाप्त होने के बाद भी जब श्री राम और लक्ष्मण नहीं लौटे तो माता सीता ने खुद ही राजा दशरथ का पिंडदान कर दिया. सबसे ज्यदा आश्चर्य की बात तो ये है की माता सीता की इस पिंडदान को राजा दसरथ ने स्वीकार भी कर लिया वो भी बिना पूरी पूजन सामग्री के. अब जब इसके बाद श्री राम और लक्ष्मण लौटे तो माता सीता ने साड़ी बात बताई की उन्होनें पिंडदान कर दिया है और वो स्वीकार भी कर ली गयी है लेकिन श्री राम उनकी बात उस्नकर नाराज होगये उन्हें यकीन नहीं हो रहा था की काहिर देवी सीता कैसे उनके पिता का पिंडदान कर सकती हैं.
अपनी बात को सही साबित करने के लिए माता सीता ने वहां मौजूद पंडित, फल्गु नदी, तुलसी का पौधा, गाय और कौवे को श्री राम को सच बताने को खा लेकिन श्री राम को गुस्से में देखकर किसी ने भी उन्हें माता सीता की सच्चाई नहीं बताई. केवल वहां मौजूद वट वृक्ष ने श्री राम को पूरी बात बताई जिसके परिणाम स्वरुप माता सीता ने वट वृक्ष को आशीर्वाद दिया की सुहागिन स्त्रियाँ उनका पूजा करेंगी और उनका हमेशा विकाश होगा जिससे वो लोगों को छाया प्रदान करेंगे जबकि दूसरी तरफ सीता जी ने पंडित, गाय, फल्गु नदी और कौवे को श्राप दे दिया.