केले का घवर उठाकर ढाई किलोमीटर चली थीं रतन राजपूत, चेहरे पर हंसी ला देती है छठ पूजा की ये कहानी
छठ पूजा हिंदू धर्म का एक मुख्य त्योहार है। इस दिन भगवान सूर्य और छठ माता की पूजा की जाती है। आप बिहार के किसी भी शहर, किसी भी गांव चले जाइए, आपको छठ के त्यौहार की दीवानगी का अंदाजा लग जाएगा। वैसे देखा जाए तो हर किसी की छठ से यादें जुड़ी हैं। लेकिन आज हम आपको इस लेख के माध्यम से “अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो” सीरियल की मशहूर “लाली” रतन राजपूत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका नाम पूरा बिहार बड़े ही सम्मान से लेता है। उन्होंने ऐसी उड़ान भरी के हर बिहारी ने खुद को गौरवान्वित महसूस किया।
अभिनेत्री रतन राजपूत गांव के छठ को बहुत मिस करती हैं। घर की साफ-सफाई के साथ इसकी तैयारी शुरू होती थी। रतन राजपूत को यह बात अच्छी तरह से याद है कि किस प्रकार से पूरा परिवार ट्रैक्टर पर सवार होकर दूर-दराज के घाटों पर छठ देखने-मनाने जाया करता था। इतना ही नहीं बल्कि बचपन में गया के घाट पर जाना उन्हें आज भी याद है। रतन राजपूत कहती हैं कि परिवार के लिए घाट पर सबसे अच्छी जगह चुनने में मजा आता था इसके बाद घाट को सजाने की बारी आती थी।
रतन राजपूत कहती हैं कि किसका घाट सबसे अच्छा सजा है, इसे लेकर गांव में खूब मुकाबला होता है। उनका कहना है कि छोटी से लेकर बड़ी चीज का छठ की तैयारी में ख्याल रखा जाता है। नहाय खाय के मौके पर घर में स्वादिष्ट प्रसाद बनता है। पूजा के बाद वह प्रसाद हमें खाने को मिलता था, जिसका हमको बेसब्री से इंतजार होता था।
जब रतन का छठ लालू परिवार के साथ दिखाया गया
जब साल 2012 के उनके छठ के बारे में रतन से पूछा गया तो इस पर वह बहुत भावुक हो गईं। वह कहती हैं कि “पता नहीं कहां से वह एनर्जी आ गई थी।” रतन ने कहा कि “मैं आज भी कुछ घंटे भूखा नहीं रह सकती लेकिन वह 36 घंटे का व्रत मैंने बड़े ही आराम से कर लिया। तब मन में एक घबराहट भी थी कि कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाए।” उन्होंने कहा कि मैं अविवाहित थी, तो मैं सूप नहीं उठा सकती थी लेकिन मैंने सारी चीजें बड़े ही श्रद्धा के साथ की और आज भी करती हूं।”
रतन उन दिनों को याद करती हैं जब लालू परिवार यानी राबड़ी देवी का छठ पूरे भारत में मशहूर हुआ करता था। उस वक्त मीडिया ने रतन राजपूत के छठ को टीवी स्क्रीन पर लालू परिवार के छठ के साथ दिखाया और इसे भी उतनी ही प्रमुखता से दिखाया गया। रतन राजपूत की तस्वीरें भी अखबार के पन्नों पर छाई हुई थीं। रतन कहती हैं कि “तब कोई दबाव नहीं था, ना ही कोई दिखावा था।” वह कहती हैं कि “वह छठ को लेकर मन में सम्मान था, जो आज भी है।”
ये कहानी ला देती है चेहरे पर हंसी
रतन राजपूत ने छठ के त्यौहार पर बनने वाले हर प्रसाद को लाजवाब बताया। रतन कहती हैं कि इसे बड़े ही शुद्धता के साथ बनाया जाता है। प्रसाद को बनाते हुए इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि प्रसाद को लेकर आपके मन में कोई लालच ना हो। रतन एक कहानी को याद करती हैं और कहती हैं कि एक बार उनकी बहन छठ के प्रसाद के लिए चटनी पीस रही थी, तब चटनी पीसने के लिए सिलबट्टे का इस्तेमाल होता था।
रतन ने कहा कि चटनी पीते हुए उनकी बहन के मुंह से थोड़ी सी लार टपक कर चटनी में चली गई और रतन ने यह सब देख लिया। उनकी बहन ने यह सब मां से बताने के लिए मना किया था, लेकिन रतन ने मां को सब कुछ बता दिया था, जिसके बाद मां ने बहन को एक जोरदार से थपकी दी और दोबारा से चटनी पीसने के लिए बोला।
केले का घवर उठा कर ढाई किलोमीटर चलीं रतन
रतन ने कहा कि बचपन से ही उनका पूजा का कंसेप्ट अलग रहा है। वह प्रकृति की पूजा करती रही हैं। रतन कहती हैं कि वह सूरज को जल डालती रही हैं। वो कहती हैं “हवा है नदी है उनके प्रति मेरा बहुत सम्मान है। नेचर ने हमें इतान कुछ दिया है और हम लेते ही जा रहे हैं।” रतन ने कहा कि पता नहीं कहां से वह ताकत आ गई थी कि वह छठ की भीड़ में केले का घवर उठाकर ढाई किलोमीटर तक पैदल चली थीं। छठ के प्रसाद को आप बीच रास्ते में नहीं रख सकते, तो मैं ढाई किलोमीटर तक उसे अपने कंधे पर डाल कर चली। रतन कहती है कि “छठ आप कहीं भी कर सकते हैं लेकिन सभी के सहयोग के लिए लोग गांव जाना चाहते हैं, जहां सब मिलकर छठ मना सकें।”
मन्नत पर विश्वास नहीं रखती हैं रतन
रतन ने कहा कि घर में इस बार छठ ना होने की वजह से वह काफी उदास हैं। रतन कहती हैं कि लोगों को यही लग रहा है कि वह पटना में हैं और छठ मनाने जरूर आई होंगी। रतन ने कहा ‘मैंने भगवान से करियर के लिए कभी कुछ नहीं मांगा है। मैं बस एक अच्छी इंसान बनूं, यही हमेशा चाहत रही। अच्छा एक्टर होना ठीक है, पर एक अच्छा इंसान होना उससे भी ज्यादा आवश्यक है।
वह कहती है कि वह मन्नत में विश्वास नहीं करती हैं। उनका कहना है कि कई बार हम भगवान से गलत चीज मांग लेते हैं और वह मिल भी जाती है फिर जो हालत होती है वह अच्छी नहीं होती। मुझे सरप्राइज़ पसंद है। भगवान मुझे बस वही देते रहें। रतन कहती हैं कि मैं मुंबई में छठ के मौके पर अकेला महसूस कर रही हूं। उन्हें बिहार की बहुत याद आती है। रतन के पास छठ से जुड़ी कई यादें हैं।