लड़का हो या लड़की दोनों को ही अपनी शादी को लेकर बहुत से सपने होते हैं। हर कोई यही चाहता है कि उसका जीवनसाथी हमेशा साथ रहे और हंसी-खुशी जीवन व्यतीत करें। विवाह के बंधन को बहुत ही पवित्र बताया गया है। यह रिश्ता सात जन्मो तक चलने वाला रिश्ता माना जाता है। जब लड़का-लड़की विवाह के बंधन में बंध जाते हैं, तो वह अपने नए जीवन की शुरुआत करते हैं और जिंदगी भर एक-दूसरे का हर परिस्थिति में साथ निभाने का वादा भी करते हैं।
जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं शादीशुदा जिंदगी में बहुत से उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी शादीशुदा जिंदगी हंसी-खुशी व्यतीत होती है तो कभी परेशानियां उत्पन्न होने लगती हैं। परंतु अगर किसी लड़की का पति शादी के कुछ ही दिन बाद यह दुनिया छोड़कर चला जाए तो वह वक्त लड़की के लिए सबसे दुखद रहता है। पति के जाने से लड़की के ऊपर क्या बीतती है, यह उससे ज्यादा और कोई भी नहीं समझ सकता। आप ऐसा समझ सकते हैं कि पति को खोने के बाद लड़की की जिंदगी नर्क जैसी हो जाती है।
कम उम्र में ही लड़की का विधवा हो जाना बहुत दुखद रहता है. जिंदगी बहुत बड़ी है और अकेले जीवनसाथी के काटना बहुत मुश्किल है। समाज विधवा महिलाओं पर अक्सर अत्याचार करता हुआ नजर आता है। प्राचीन समय में कई गलत प्रथाओं की वजह से विधवा महिलाओं पर अत्याचार किए जाते थे। लेकिन आज कल के आधुनिक काल में शिक्षित समाज में विधवा पुनर्विवाह को बुरा नहीं माना जाता। लेकिन कुछ कट्टर धार्मिक लोगों और देहाती, अनपढ़ समाज में विधवाओं की दशा अभी भी बहुत शोचनीय है।
जो लोग पुनर्विवाह को अशुभ या शान के खिलाफ सोच रखते हैं उनको अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की बांदा शाखा ने एक नई राह दिखाई है। जी हां, इस महासभा ने एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। क्षत्रिय समाज के उस बेटे और बेटी की है, जिसमें तमाम कुरीतियों को दरकिनार कर देवर को पति और भाभी को पत्नी के रूप में स्वीकार किया है।
आपको बता दें कि हाल ही में बीते शनिवार के दिन विधवा विवाह पूरी शानो-ओ-शौकत के साथ भव्य मैरिज हॉल में हुआ। वैसे खासकर बुंदेलखंड में विधवा या पुनर्विवाह का रिवाज बिल्कुल भी नहीं है परंतु इन सभी पुरानी मान्यताओं को क्षत्रिय महासभा ने दरकिनार करते हुए सभी को एक नया संदेश दिया है। हाल ही में विधवा वंदना सिंह ने अपने ही देवर शुभम सिंह उर्फ मनीष के साथ सात फेरे लिए, जिसकी गवाही शनिवार की शाम बनीं।
विवाह के इस शुभ उत्सव में दोनों पक्षों के खानदानी और व्यवहारी शरीक हुए थे। जयमाला पहनाकर वंदना सिंह ने अपने देवर शुभम सिंह को जीवनसाथी बना लिया। वहीं शुभ मुहूर्त में शुभम सिंह ने भी अपनी भाभी रही वंदना को अपनी पत्नी का दर्जा दिया। इसी के साथ क्षत्रिय समाज में एक नई शुरुआत हो गई। वर-वधु दोनों को ही क्षत्रिय महासभा के बांदा जिलाध्यक्ष नरेंद्र सिंह परिहार सहित महासभा के तमाम पदाधिकारियों ने आशीर्वाद दिया। इसके साथ ही यह कहा गया कि बुंदेली धरती से शुरू हुआ यह शुभ कार्य देश-प्रदेश तक फैलाया जाएगा।
शनिवार के दिन ही देवर के साथ सात फेरे लेने से पहले विधवा से पुनः सुहागन बनीं वंदना ने बताया कि शादी के कुछ महीने के बाद ही उसका पति दुनिया छोड़ कर चला गया, जिसके बाद उसका जीवन पूरी तरह से निराश हो गया लेकिन सास-ससुर सहित ससुराल के सभी सदस्यों ने उनका पूरा साथ दिया, वह एक तरह से वंदना के लिए संकट मोचन साबित हुए। वंदना अपने ससुराल की भरपूर सराहना करती हैं और उन्होंने यह भी बताया कि उनके ससुराल का माहौल मायके से भी बहुत अच्छा है। दुबारा से वही परिवार ससुराल के रूप में वंदना को मिला, जिसके लिए उन्होंने खुशी जताई है।