बोझ नहीं वरदान हैं बेटियां, बिहार की शान बनी सात बहनें, सारण की बेटियों पर माता-पिता को गर्व
आजकल के समय में लड़का और लड़की में कोई भी फर्क नहीं है। लड़कियां विभिन्न क्षेत्रों में अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने देश का नाम रोशन कर रही है हैं। आजकल लड़कों से लड़कियां बिल्कुल भी पीछे नहीं हैं। वर्तमान समय में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। इसी बीच हम आपको बिहार के सारण जिले के एकमा गांव की रहने वाली सात बहनों का उचित उदाहरण देने जा रहे हैं।
अक्सर देखा गया है कि बहुत से लोग बेटियों को बोझ समझते हैं और उनके जन्म पर ताने मारते हैं। जो लोग ऐसा करते हैं उन्हीं को यह सफलता की कहानी आईना दिखाती है। यह कहानी सात सगी बहनों की है। सारी बहनें सरकारी नौकरी पर लग गई हैं। जो कभी लोग इनके पैदा होने पर ताना मारते थे आज वहीं इनकी कामयाबी पर गर्व महसूस कर रहे हैं।
जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार की राजधानी पटना से 70 किलोमीटर दूर सारण जिले के गांव एकमा के राजकुमार सिंह के परिवार की। जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी परंतु इसके बावजूद भी राजकुमार सिंह ने सातों बेटियों को खूब पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया और नतीजा आज सबके सामने आ गया है।
आपको बता दें कि एकमा के राजकुमार सिंह की आजीविका का साधन आटा चक्की है। बहुत सामान्य आर्थिक स्थिति और घर में सात बेटियों के बाद एक बेटा है। घर परिवार का भी जोर रहा कि जल्दी से हाथ पीले कर दो, सात-सात को निभाना है। पर बेटियां झुकी नहीं और ना ही पिता झुके। सब बेटियों ने एक-एक कर वर्दी पहनी और राज्य पुलिस बल व अद्र्ध सैन्य बल में समाज और देश की सेवा कर रही हैं। एक बेहद ज्यादा सामान्य परिवार की लड़कियों ने खुद की जिद को साबित कर दिखाया।
सबसे बड़ी बहन का नाम रानी है और उनकी छोटी बहन रेणु ने वर्दी पहनने के लिए गांव में ही दौड़ लगानी आरंभ करी। ताने नजरअंदाज करते हुए यह आगे बढ़ती गईं। साल 2006 में रेणु का सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में कॉन्स्टेबल पद पर चयन हो गया। अन्य छह बहनों का हौसला बढ़ा। इधर बड़ी बहन रानी के बाद साल 2009 में बिहार पुलिस में कांस्टेबल चुन ली गई। इसके बाद अन्य पांच बहने भी विभिन्न बल में नियुक्त हो गई।
बहने ही एक-दूसरे की शिक्षक और गाइड बनी। गांव के ही स्कूल में पढ़ीं। खुद अध्ययन और अभ्यास की बदौलत नौकरियां हासिल की। आज सातों बेटियां मैट्रिक पास पिता राजकुमार सिंह उर्फ कमल सिंह और आठवीं पास मां शारदा देवी का अभिमान हैं। इन बहनों से प्रेरणा व टिप्स लेकर प्रखंड के हंसराजपुर, एकमा, भरहोपुर, साधपुर राजापुर की दर्जनों लड़कियां पुलिस सेवा में चुनी जा चुकी हैैं।
भारत की पांच महिला जासूस
सरस्वती राजमणि: भारत की सबसे कम उम्र की महिला जासूस सरस्वती राजमणि थीं। 16 साल की उम्र में सरस्वती अपनी साथी दुर्गा के साथ लड़का बनकर ब्रिटिश खेमे में रहीं। अंग्रेज सिपाहियों के कपड़े धोती, जूते पॉलिश करती और यह करते हुए उन्होंने कई अहम जानकारियां जुटाईं।
अज़ीजऩ बाई: अज़ीजऩ बाई पेशे से नर्तकी थीं। स्वाधीनता आंदोलन से उनका कोई निजी फायदा नहीं था लेकिन वह नाना साहिब और तात्या टोपे से बेहद प्रभावित हईं। अज़ीजऩ बाई के यहां आने वाले अंग्रेजी सिपाहियों से वह अहम जानकारियां लेकर स्वतंत्रता सेनानियों तक पहुचतीं।
सहमत ख़ान: साल 2018 में आई फिल्म “राजी” सहमत खान की जिंदगी पर आधारित फिल्म बताई जाती है। सहमत एक कश्मीरी युवती थीं, जो अंडरकवर एजेंट बनकर पाकिस्तान पहुंची। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी।
नूर इनायत ख़ान: नूर इनायत खान द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की सीक्रेट एजेंट थीं। वह पहली महिला थीं जिन्हें बतौर रेडियो ऑपरेटर नाजी द्वारा कब्जे में लिए गए फ्रांस में भेजा गया था।
दुर्गावती देवी: दुर्गावती देवी या दुर्गा भाभी एक ऐसा किरदार है जो भगत सिंह से जुड़ी हर फिल्म में दिखाया गया है। वह स्वतंत्रता सेनानी भगवती चरण वोहरा की पत्नी थी। बम की टेस्टिंग के दौरान वोहरा का निधन हो गया था। दुर्गा ने इसके बाद अकेले ही आजादी की लड़ाई जारी रखी। एक बार उन्होंने खुद को भगत सिंह की पत्नी का भी भेष रचा था और उन्हें पुलिस से बचाया था।
आपको बता दें कि महिलाओं के लिए सेना में काम करना कोई आसान काम नहीं माना जाता है लेकिन अब तस्वीर बदलती जा रही है। संसद में सरकार के एक दस्तावेज के मुताबिक, फरवरी 2021 तक भारत में सेना के तीनों अंगों में 9000 से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं।
थल सेना में 6807, वायु सेना में 1607 और नौसेना में 700 से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं। कुल कार्यबल में थल सेना में 0.56%, वायु सेना में 1.08% और नौसेना में 6.5% महिलाएं सैन्य कर्मी हैं और सबसे अच्छी बात यह है कि 1700 महिलाओं को मिलिट्री पुलिस में भर्ती किए जाने की भी रह खोल दी गई है।