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कोविड में महिला शिक्षिका की गई नौकरी, नहीं खोई हिम्मत, कचरा ढोने वाली गाड़ी चलाकर कर रही परिवार का पालन-पोषण

इंसान का जीवन हमेशा एक समान व्यतीत हो ऐसा संभव नहीं हो सकता। इंसान के जीवन में अभी खुशियां हैं तो हो सकता है कि उसको परेशानी का भी सामना करना पड़े। अगर अभी जीवन में परेशानियां हैं तो इंसान के जीवन में खुशियां भी आएगी। जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कोरोना वायरस ने देशभर के लोगों का जीवन पूरी तरह से बदल कर रख दिया है। देशभर के लिए यह वायरस चिंता का विषय बना हुआ है। सरकार के द्वारा कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं परंतु अभी तक कोई भी फायदा नजर नहीं आ रहा है। रोजाना ही कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं इतना ही नहीं बल्कि कोरोना की वजह से लोगों की जान भी जा रही है।

जब कोरोना की पहली लहर ने देश में दस्तक दी थी तो लॉक डाउन का ऐलान किया गया था। लॉक डाउन में लोगों का कामकाज बंद हो गया। नौकरी करने वाले लोगों की नौकरियां चली गई, जिसके चलते आर्थिक संकट सबसे गंभीर समस्या खड़ी हो गई। कोई भी रोजगार ना होने के कारण घर का गुजारा चला पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था। इस महामारी ने सभी लोगों का जीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया।

हालांकि संकट की इस घड़ी में बहुत से लोग सामने आए हैं जिन्होंने जरूरतमंदों की मदद की है परंतु कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने मुश्किल परिस्थिति में भी अपनी हिम्मत नहीं हारी और हर कठिनाई का डटकर सामना किया। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से भुवनेश्वर की स्मृतिरेखा बेहरा के बारे में बताने वाले हैं, जिनकी नौकरी कोरोना में चली गई परंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। स्मृतिरेखा कचरा ढोने वाली गाड़ी चला कर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रही हैं।

स्मृतिरेखा कई वर्षों से एक प्ले और नर्सरी स्कूल में बच्चों को पढ़ा रही थी परंतु जब कोरोना वायरस की वजह से लॉक डाउन लगा तो उनका स्कूल भी बंद हो गया, जिसकी वजह से उनकी नौकरी चली गई। कोई भी कामकाज ना होने के कारण दिन पर दिन उनकी हालत बिगड़ गई। घर का गुजारा चला पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था। आखिर में उन्होंने कचरा उठाने वाली गाड़ी चलाने का निर्णय ले लिया और मजबूरी में उन्होंने यह काम किया।

आपको बता दें कि स्मृति रेखा के घर में उनके पति, दो बेटियां और परिवार के अन्य सदस्य हैं। कोरोना महामारी के बीच उनके पति को भी अपनी निजी नौकरी से कोई वेतन नहीं मिल रहा था, ऐसी स्थिति में स्मृतिरेखा ने सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।

भले ही स्मृतिरेखा ने कोरोना काल में अपनी नौकरी खो दी परंतु उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं खोई। मुश्किल घड़ी में उन्होंने बड़ी ही हिम्मत से काम लिया और भुवनेश्वर नगर निगम (बीएमसी) “मु सफाईवाला” के कचरा संग्रहण वाहन को चलाना शुरु कर दिया। वहां से दिहाड़ी के रूप में उन्हें कुछ पैसे मिल जाते हैं। इन्हीं पैसों से वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर रही हैं। संकट की इस घड़ी में जिस प्रकार से स्मृतिरेखा ने अपने पूरे परिवार को संभाला, हम उनके जज्बे को सलाम करते हैं।

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