इस संसार में हर कोई इंसान अपने जीवन में कामयाबी पाने के लिए कठिन से कठिन मेहनत करता है परंतु हर किसी को कामयाबी नहीं मिल पाती है। अक्सर देखा गया है कि लोग अपने जीवन के परिस्थितियों और गरीबी के आगे हार मान जाते हैं, जिसके चलते वह अपना सपना पूरा नहीं कर पाते हैं परंतु इस दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो अपनी कड़ी मेहनत, लगन, जुनून से विश्वस्तर पर अपने देश का नाम रोशन कर रहे हैं। भले ही यह लोग गरीब परिवार में जन्मे हैं परंतु अपनी कड़ी मेहनत से कामयाबी तक पहुंच रहे हैं कुछ ऐसे ही कहानी रेवती वीरामनी की है।
आपको बता दें कि तमिलनाडु में जन्मी रेवती वीरामनी गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। अब यह टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने जा रही हैं। रेवती ने अपने जीवन में बहुत सी मुश्किल परिस्थितियां देखी हैं। जब वह 5 साल की थीं तो वह अनाथ हो गई। दिहाड़ी मजदूर नानी ने उनका पालन पोषण किया। रेवती शुरुआत में नंगे पर दौड़ी क्योंकि उनके पास जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे लेकिन अब वह ओलंपिक में दौड़ने का अपना सपना साकार करने वाली हैं।
आपको बता दें कि तमिलनाडु के मदुरै जिले के सकीमंगलम गांव की रहने वाली 23 वर्षीय रेवती 23 जुलाई से शुरू हो रहे टोक्यो ओलंपिक खेलों में भाग लेने जा रही हैं। वह भारत की 4 गुना 400 मीटर मिश्रित रिले टीम का हिस्सा हैं। रेवती वीरामनी ने अपने जीवन में बहुत से मुश्किल हालात का सामना किया है। उन्होंने अपने जीवन की मुश्किलों को याद करते हुए यह बताया कि “मुझे बताया गया था कि मेरे पिता के पेट में कुछ तकलीफ थी जिसकी वजह से उनका निधन हो गया था। इसके 6 महीने बाद दिमागी बुखार से मेरी माता भी चल बसी। जब माता जी की मृत्यु हुई तो रेवती की उम्र 6 साल की भी नहीं थी।
रेवती ने बताया कि “मुझे और मेरी बहन को मेरी नानी के अराम्मल ने पाला है। हमें पालने के लिए वह बहुत कम पैसों में भी दूसरों के खेतों में ईट भट्टे पर काम किया करती थीं।” उन्होंने आगे बताया कि हमारे रिश्तेदारों ने नानी को कहा कि वह हमें भी काम पर भेजें लेकिन उन्होंने मना करते हुए कहा कि हमें स्कूल जाना चाहिए और पढ़ाई करनी चाहिए। 76 साल की अपनी नानी के जज्बे की वजह से ही रेवती और उनकी बहन स्कूल जा सकी है।
आपको बता दें कि दौड़ने में प्रतिभा की वजह से रेवती को रेलवे के मदुरै खंड में टीटीई की नौकरी मिल गई जबकि उनकी छोटी बहन अब चेन्नई में पुलिस अधिकारी हैं। रेवती बहुत ज्यादा गरीब थी उसके पास प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे। कई बार वह नंगे पैर भी दौड़ी। जब उनके कोच कानन ने उनका टैलेंट देखा तो वह हैरान रह गए और उनकी सहायता के लिए आगे आए। उन्होंने रेवती को जूते से लेकर स्कूल फीस जमा कराने में सहायता की।
आपको बता दें कि कानन के मार्गदर्शन में रेवती ने 2016 से 2019 तक ट्रेनिंग की और फिर उन्हें पटियाला के राष्ट्रीय खेल संस्थान में राष्ट्रीय शिविर में चुना गया। कानन के मार्गदर्शन में 100 मीटर और 200 मीटर की चुनौती पेश करने वाली रेवती को गलीना बुखारिना ने 400 मीटर में हिस्सा लेने को कहा था। उन्होंने कहा कि गलीना मैडम ने मुझे 400 मीटर में दौड़ने को कहा। उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि मैंने 400 मीटर में हिस्सा लिया और मैं अब अपने पहले ओलंपिक में जा रही हूँ। उन्होंने कहा कि उनका यह सपना इतनी जल्दी साकार हो जाएगा उनको उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी। रेवती ने यह आश्वासन देते हुए कहा कि वह ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगी।