कहते हैं जब कोई इंसान मेहनत और लगन से कुछ करने की ठान लेता है तो किस्मत में उसे कामयाब होने से रोक नहीं सकती. आज देश और दुनिया भर में जितने भी बड़े बड़े बिजनेसमैन या फिर कामयाब लोग हैं उनकी शुरुआत जरूरी नहीं किसी बड़ी कंपनी से ही हुई है बल्कि उन्होंने छोटे-मोटे काम करके ही अपने करियर की शुरुआत की थी. बात अगर हल्दीराम कंपनी की करें तो आज यह ब्रांड वैश्विक स्तर पर पॉपुलर हो चुका है. हल्दीराम का नमकीन हो या फिर हल्दीराम की मिठाइयां घर-घर में प्रचलित है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हल्दीराम के मालिक ने इस ब्रांड की शुरुआत एक छोटी सी नाश्ते की दुकान से की थी? जी हां हल्दीराम की सक्सेस स्टोरी काफी दिलचस्प है.
आजादी के बाद नंबर वन ब्रांड बनाने वाले हल्दीराम की शुरुआत बीकानेर परिवार ने की थी. इस परिवार का पूरा खर्चा तनसुख दास के कंधों पर था. आजादी के 50 से 60 साल पहले से ही वे परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए लगातार संघर्ष करते चले आ रहे थे. वही तनसुख दास के बेटे भीखाराम अग्रवाल भी काम की तलाश में थे. उन्होंने अपने बेटे चांदमल के नाम पर एक छोटी सी दुकान खोली जिसका नाम भी भीखाराम चांदमल रखा गया था. इस दुकान पर मिलने वाला बीकानेरी भुजिया लोगों को काफी पसंद आने लगा जिसके बाद उन्होंने भुजिया नमकीन बेचने की ही सोच ली. बता दे कि भीखाराम ने नमकीन बनाने की कला अपनी बहन बीखी बाई से सीखी थी. जब भी बीखी अपने भाई के घर आती तो भुजिया साथ लेकर जरूर आया करती थी. भुजिया बेचकर इनकी रोजी रोटी जैसे तैसे चल रही थी. फिर आखिरकार सन 1908 में भीखाराम के घर पोते गंगा बिशन अग्रवाल का जन्म हुआ. बिशन अग्रवाल की मां उन्हें प्यार से हल्दीराम कहकर बुलाती थी. ऐसे में हल्दीराम ने बचपन से ही अपने घर में नमकीन भुजिया बनते हुए देखा था.
जब हल्दीराम ने होश संभाला तो वह घर और दुकान के कामों में हाथ बंटाने लगे. केवल 11 साल की उम्र में हल्दीराम की शादी चंपा देवी से कर दी गई. शादी के बाद जिम्मेदारियां और बढ़ गई और हल्दीराम ने अपने दादा की भुजिया वाली दुकान पर बैठना शुरु कर दिया. वह इस दुकान को आगे बढ़ाना चाहते थे इसलिए उन्हें कुछ अलग करने की जरूरत थी ऐसे में उन्होंने भुजिया का स्वाद बढ़ाने के लिए कुछ बदलाव किए.
उन्होंने इसमें मोठ की मात्रा को बढ़ा दिया ऐसे में यह स्वाद ग्राहकों को और भी पसंद आ गया. धीरे-धीरे उनका परिवार भी समय के साथ बढ़ता चला गया और परिवारिक झगड़े भी उन्हें परेशान करने लगे. ऐसे में उन्होंने अलग होकर रहने का फैसला कर लिया. घर परिवार से अलग होने के बाद उन्हें कुछ भी जायदाद में नहीं मिला. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और आखिरकार 1937 में एक छोटी सी नाश्ते की दुकान खोली. इस दुकान में उन्होंने भुजिया बेचना भी शुरू कर दिया. वह अक्सर अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भुजिया में बदलाव या एक्सपेरिमेंट करते रहते थे. समय बदला और उन्होंने इसके पूरे स्वाद को बदल डाला और उसको और भी चटपटा और क्रिस्पी बना दिया.
डिमांड बढ़ती देखकर उन्होंने अपनी दुकान का नाम हल्दीराम रख दिया. 1970 में उन्होंने पहला नागपुर में स्टोर खोला जिसके बाद उन्होंने दूसरा स्टोर 1982 में दिल्ली में खोला. यहां उन्होंने नमकीन की मैन्युफैक्चरिंग के लिए अलग-अलग प्लांट भी लगवाए. देखते ही देखते हल्दीराम के प्रोडक्ट देश और दुनिया भर में बिकने लगे और नंबर वन ब्रांड बन गया. साल 2013-14 के बीच हल्दीराम का दिल्ली वाला कंपनी का रेवेन्यू 2100 करोड़ था जबकि नागपुर का 1225 करोड़. 2019 तक आते-आते हल्दीराम का सालाना रेवेन्यू 7131 करोड रुपए हो गया. आज हल्दीराम का नाम 400 से अधिक प्रोडक्ट बनाने के लिए और अपने यूनिक स्वाद के लिए जाना जाता है.