लगन और मेहनत से कोई भी मुकाम पाया जा सकता है. इसी की मिसाल आईएएस डॉ. राजेंद्र भरुड़ है जो आज लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा बनें हैं. दरअसल डॉ. राजेंद्र भरुड़ ने पैदा होने से पहले ही अपने पिता को खोया, जिसके बाद उनकी मां देसी दारू बनाने लग गई और उसी से उन्हें पढ़ाया-लिखाया था उन्होंने भी दिन रात की मेहनत से वो सफलता पा ली, जिसका सपना लाखों युवा संजोते हैं दरअसल राजेंद्र भरुड़ का साल 1988 को महाराष्ट्र के धुले जिले के आदिवासी भील समुदाय में हुआ उनके पिता के मरने के बाद लोगों ने मां से कहा कि वो गर्भपात करा ले, क्योंकि पहले से ही उन पर तीन बच्चों को पालने का पूरा भार था, लेकिन मां ने ऐसा नहीं किया.
हालाँकि वहीं इंटरव्यू के दौरान डॉ राजेंद्र की मां बताती हैं कि जब वो 2-3 साल का था तो उन्होंने देसी दारू बनानी शुरू की मैं दारू बनाकर बेचती तो वहीं बैठकर पढ़ता था लोग इससे नमकीन वगैरह लाने को कहते थे, लेकिन मैं मना करती थी कि वो नहीं जाएगा. वो पढ़ रहा है.
दरअसल डॉ. राजेंद्र भरुड़ की मां ने आगे कहा कि उस समय बहुत खराब हालात थे कई बार तो कुछ खाने को भी नहीं होता था सूखी रोटी खा खाकर दिन कटे हैं एक झोपड़ी में रहकर किसी तरह कम कमाई में खर्च चलाया, लेकिन मेरा बेटा दिन में 24 घंटे पढता. उसी शराब के पैसे से उसकी किताबें आती. वहीं अपने एक इंटरव्यू में डॉ. राजेंद्र भरुड़ ने बताया कि बचपन में कई बार कुछ शराबी लोग उनके मुंह में शराब की कुछ बूंदे डालते थे. बार-बार ऐसा होता रहा तो उन्हें इसकी आदत होने लगी.
वहीं डॉ. राजेंद्र भरुड़ आगे बताते हैं कि अक्सर उन्हें सर्दी जुकाम आदि होने पर दवा की जगह शराब ही पिलाते थे. बड़ा होने पर सबसे ज्यादा मुझे लोगों का ये ताना चुभता कि जब वो कहते कि शराब बेचने वाले का बेटा शराब ही बेचेगा. मैंने तब ही ठान लिया कि एक दिन इस बात गलत साबित करना है. वो लोग अक्सर मुझसे कहते कि मुझे स्नैक्स लाकर दो, मैं उस समय बच्चा था तो उनकी बात मान लेता था लेकिन अक्सर लोग मुझे इस काम के बदले कुछ पैसे देते थे.
वहीं डॉ. राजेंद्र भरुड़ बताते हैं कि उन्होंने इस पैसे से अपने लिए किताबें खरीद और पढ़ाई की इसी मेहनत और लगन का परिणाम था कि उनके 10वीं में 95 फीसदी और 12वीं में 90 फीसदी नंबर आए थे साल 2006 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा दी तो यहां भी सीट मिली उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से की जहां उन्हें बेस्ट स्टूडेंट का अवॉर्ड मिला. फिर यूपीएससी परीक्षा में पहले उन्हें आईपीएस कैडर मिला फिर अगले प्रयास में साल 2013 में उन्हें आईएएस कैडर मिला फिलहाल डॉ. राजेंद्र भरुड़ महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर हैं. आईएएस बनने के बाद उन्होंने अपनी मां को समर्पित एक किताब भी लिखी दी अब उनके परिवार में उनकी मां और पत्नी के अलावा एक बच्चा भी है.