भारत देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास पैसों की कमी के चलते अपना खुद का घर नहीं है. ऐसे में उन्हें किराए के घर में रहना पड़ता है. वहीँ जो लोग किराए पर घर देते हैं या फिर किराए पर कमरा देते हैं, वह भी किराएदार को लेकर अक्सर ही चिंतित रहते हैं. क्यूंकि बहुत से ऐसे मामले सामने आए हैं जहाँ किराएदार एक बार घर में आ तो जाते हैं लेकिन ना तो वह टाइम पर किराया देते हैं और ना ही घर खाली करने का नाम लेते हैं. ऐसे में मकान मालिक के लिए दुविधा बन जाती है. परन्तु अब सुप्रीम कोर्ट ने मकान मालिकों के लिए एक नया आदेश ज़ारी किया है जिससे कईं हैरानीजनक परिणाम सामने आ सकते हैं. कोर्ट ने अब यह साफ़ कह दिया है कि भले ही कोई किरायेदार या फिर केयरटेकर कितने भी लंबे अरसे के लिए घर में क्यों ना रह रहा हो, लेकिन अब वह मकान पर कब्ज़ा नहीं कर सकता है. ऐसी स्तिथि में किराएदार को मकान मालिक के कहे अनुसार तीन महीने के अंदर-अंदर घर खली करना ही पड़ेगा वरना उसपर सख्त करवाई की जाएगी.
इसके साथ ही उच्च न्यायलय कोर्ट ने सीपीसी की धरा 7 और 11 के तहत यह आदेश दिया कि मकान पर कोई भी केयरटेकर या फिर अन्य व्यक्ति कब्ज़े का दावा नहीं कर सकेगा. उन्होंने कहा कि अगर व्यक्ति समय पर नहीं दे रहा है तो मकान मालिक को पूरा हक़ है कि वह अपनी मर्जी अनुसार करवाई करके उसको घर से बाहर निकलने का समय दे सके. बता दें कि इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब एक किरायेदार ने मकान मालिक के मकान पर कब्ज़ा करने के लिए याचिका दायर की थी. लेकिन न्यायलय ने कब्ज़ा देने से साफ़ मना कर दिया.
वहीं इस मामले में सबसे दिलचस्प बात यह रही है कि उसके अनुसार निचली अदालत और हाईकोर्ट ने मकान मालिक की याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया था। जिस याचिका में केयरटेकर ने खुद को संपत्ति परिसर से खाली नहीं कराने की गुहार लगाई थी.सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल जज और हाईकोर्ट द्वारा दिए गए विचार से असहमति जताई हुए कहा, ‘केयर टेकर या नौकर अपने लंबे कब्जे के बावजूद संपत्ति पर कभी भी दावा नहीं कर सकते और मांग पर उन्हें तुरंत कब्जा देना पड़ेगा.जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि जहां तक प्रतिकूल कब्जे की दलील का संबंध है, मालिक के कहने पर केयरटेकर/नौकर को तुरंत कब्जा देना पड़ेगा.’
ख़बरों की माने तो इस किराएदार ने अपने मकान मालिक को पिछले तीन साल से कोई किराया नहीं दिया था और ना ही वह घर के साथ दी गई दूकान को खाली करने के लिए राज़ी हो रहा था. ऐसे में दूकान के मालिक ने न्यायलाय का दरवाज़ा खटखटाया और इंसाफ की गुहार लगाई जिसके बाद ना केवल उसे उसका किराया दिलवाया गया बल्कि कोर्ट ने दुकान छोड़ने के भी निर्देश दे डाले. इसके साथ ही वाद दाखिल होने से लेकर परिसर खाली करने तक 35 हजार प्रति महीने किराये का भुगतान करने के लिए भी कहा था. इसके बाद भी किरायेदार ने कोर्ट का आदेश नहीं माना. पिछले साल जनवरी में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने किरायेदार को करीब नौ लाख रुपये जमा करने के लिए चार महीने का समय दिया था, लेकिन उस आदेश का भी किरायेदार ने पालन नहीं किया. इसके बाद किराएदार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां से भी उसकी याचिका खारिज करते हुए. दुकान तुरंत खाली करने के आदेश जारी किए गए.