एक हाथ ना होने पर बेटे को बोझ समझ मां-बाप ने बेचा, बूढ़ी बुआ ने पाला, ऐसा जीता मिस्टर दिल्ली का ख़िताब

ऐसा कहा जाता है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। जिंदगी में बहुत से उतार-चढ़ाव आते हैं। जीवन में कई मुसीबतें भी आती हैं परंतु कभी भी अपने जीवन की मुसीबतों के आगे हार नहीं मानना चाहिए बल्कि इनका डटकर मुकाबला करना चाहिए।

आज हम आपको इस लेख के माध्यम से एक ऐसे लड़के के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके जन्म से उसके माता पिता खुश होने की बजाय दुखी हुए, क्योंकि बेटे के एक हाथ नहीं था। इसी वजह से माता पिता का प्यार इसे महज दो महीने भी नहीं मिल पाया। जब मां-बाप ने देखा कि उनका बेटा अपाहिज है और बच्चे के एक हाथ नहीं है, तो उन्होंने एक भिखारी को 25000 में बच्चे को बेच दिया।

दरअसल, हम आपको जिस बच्चे की कहानी बता रहे हैं उसका नाम तजिंदर मेहरा है, जिनकी जिंदगी में कई मुसीबतें आईं लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। मासूम बेटा तजिंदर जब बिकने के बाद भिखारी के हाथों में पहुंचने वाला था कि उसी दिन इसकी जिंदगी में बुआ मसीहा बनकर आई। बुआ ने अपने परिवार के खून को गैरों के हाथों में जाने देने की बजाय इसे पाल पोसकर बड़ा करने का निर्णय लिया।

बुआ ने बच्चे को पढ़ाया लिखाया और बड़ा किया। जिस बेटे से मां बाप ने मुंह मोड़ा, आज उसकी जिंदगी उन लोगों के लिए मिसाल है जो हार मान जाते हैं। विकलांगता की वजह से खुद को कमतर आंकते हैं। एक हाथ नहीं होने के बावजूद भी तजिंदर मेहरा ने वह कर दिखाया है जो कई सामान्य लड़के भी नहीं कर पाते हैं।

आपको बता दें कि तजिंदर मेहरा का जन्म दिल्ली के उत्तम नगर में 11 दिसंबर 1993 को ऑटो चालक राजकुमार वघरों में झाड़ू पोछा करने वाली सरोज देवी के घर में हुआ था। इनका एक बड़ा भाई है जिसका नाम दविंद्र सिंह है वह भी ऑटो चालक है। तजिंदर मेहरा कहते हैं कि उनके लिए बुआ प्रीति और फूफा ओमप्रकाश ही माता-पिता हैं।

तजिंदर मेहरा कहते हैं एक हाथ के साथ जन्म हुआ तो असल माता-पिता को खुशी नहीं हुई। उन्हें मैं बोझ लगने लगा था इसलिए उन्होंने भिखारी को बेचने का सौदा कर लिया और मुझे घर से बाहर फेंक दिया था।

जब तजिंदर 2 महीने के थे तो परिजन इन्हें भिखारी को बेचना चाहते थे। यह बात दिल्ली के ही मोती नगर के कर्मपुरा में रहने वाली बुआ प्रीति को पता चली तो वह अपने भाई राजकुमार के घर आईं और जिद करने लगीं कि वह अपने परिवार के खून को बिकने नहीं देंगी। भाई-भाभी ने विकलांग बच्चे को पालने में असमर्थता जताई तो तजिंदर को अपने घर ले आईं, तब से इन्हीं के पास है।

बता दें पैसों की तंगी के बावजूद भी तजिंदर की बुआ ने उन्हें पढ़ाया। साथ ही उनका ख्याल रखा। तजिंदर आगे पढ़ना चाहते थे लेकिन पैसों की कमी की वजह से ऐसा नहीं हो पाया। इसके बाद तजिंदर ने अपनी बुआ का खर्च उठाने के लिए काम की तलाश शुरू की। इसी दौरान उनका वर्कआउट से प्रेम बढ़ा। पहले तजिंदर ने घर पर वर्कआउट करना शुरू किया इसके बाद उन्होंने घर के पास एक सरकारी जिम ज्वाइन किया जहां कुछ समय की ट्रेनिंग के बाद उन्होंने प्राइवेट जिम जॉइन कर लिया।

जिम में उनके कोच दिनेश ने 2016 में मिस्टर दिल्ली प्रतियोगिता में नाम रजिस्टर करवाने का सुझाव दिया। कोच की बात सुनकर तजिंदर ने ऐसा किया और टाइटल जीत भी लिया। इसके बाद 2017 और 2018 में भी तजिंदर ने टाइटल जीता। बाद में तजिंदर फिटनेस कोच बन गए परंतु कोरोना वायरस से जिम बंद हो गए जिसकी वजह से फिर से उन्हें मुश्किल का सामना करना पड़ गया।

इसके बाद जब लॉकडाउन खुला तो तजिंदर ने चिकन पॉइंट की शुरुआत की। इसके लिए उन्होंने अपने ट्रेनर से ₹30000 उधार लिए और दिल्ली में एक स्टॉल की शुरुआत की। देखते ही देखते उनके स्टॉल पर लोगों की भीड़ लगने लगी। वह एक हाथ से ही टिक्का बनाकर लोगों को परोसते हैं। एक हाथ के बिना जन्मे तजिंदर को आज लोग जानते हैं तो बस उनकी लगन और उनकी बुआ के आशीर्वाद की वजह से। सोशल मीडिया पर तजिंदर की कहानी कई लोगों को इंस्पायर कर रही है।