मेरिट लिस्ट में आए थे टॉप, फिर भी छीन ली गई नौकरी, 30 साल की कानूनी लड़ाई के बाद हासिल किया अपना हक़
आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने अपने जीवन में कठिन संघर्षों के बाद अपना हक हासिल किया है। 30 साल के लंबे संघर्ष के बाद नौकरी हासिल करने वाले शिक्षक जेराल्ड जॉन की आज हम आपको कहानी बताने जा रहे हैं। जेराल्ड जॉन को ना किसी से शिकायत है और ना ही कोई मलाल। तीस साल के लंबे संघर्ष के बाद अदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और उन्हें विद्यालय में पोस्टिंग भी थी और साथ ही मुआवजे के तौर पर 80 लाख रुपए देने का आदेश भी दिया है। हालांकि इस नौकरी को हासिल करने के लिए जितना संघर्ष जेराल्ड जॉन को करना पड़ा, वेतन भत्तों के लिए भी उतना ही जूझना पड़ रहा है।
दरअसल, हुआ ऐसा कि 1989 में देहरादून की सीएनआई बॉयज़ इंटर कॉलेज में कॉमर्स विषय के शिक्षक के लिए बहाली निकली थी। उस समय के दौरान जेराल्ड जॉन की उम्र 24 वर्ष की थी। जब उन्होंने अखबार में छपा हुआ एक विज्ञापन पढ़ा तो जेराल्ड जॉन उसे पढ़कर देहरादून के सरकारी सहायक प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान CNI बॉयज इंटर कॉलेज (C.N.I. BOYS’ INTER COLLEGE) में कॉमर्स विषय के शिक्षक की पोस्ट प्राप्त करने के लिए आवेदन किया था।
मेरिट लिस्ट में किया टॉप, फिर भी नहीं मिली नौकरी
एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि जेराल्ड जॉन ने सिर्फ इंटरव्यू ही पास नहीं किया था बल्कि उन्होंने मेरिट लिस्ट में टॉप भी किया, परंतु इसके बावजूद भी उनको नौकरी नहीं दी गई। जब उन्होंने नौकरी ना मिलने की वजह जननी चाही तो उनको यह बताया गया था कि नौकरी पाने वाले कैंडिडेट को शॉर्टहैंड आना जरूरी है जबकि जेराल्ड जॉन को शॉर्टहैंड नहीं आती थी इसलिए यह नौकरी जेराल्ड जॉन के बाद दूसरे स्थान पर रहे व्यक्ति को दे दी गई थी।
जेराल्ड जॉन का जिस पद के लिए चयन हुआ था उस पर शॉर्टहैंड जानने का नियम लागू नहीं होता था। अखबार में भी जो इस नौकरी के लिए विज्ञापन दिया गया था उसमें शॉर्टहैंड का कहीं भी जिक्र नहीं किया गया था। जेराल्ड जॉन को नौकरी मिलते ही उनसे वह नौकरी छीन ली गई।
55 साल की उम्र में मिला न्याय
नौकरी के लिए अखबार में जो विज्ञापन दिया गया था उसमें शॉर्टहैंड के बारे में उल्लेख नहीं किया गया था। इसी को आधार बनाकर फर्रुखाबाद के रहने वाले जेरॉल्ड जॉन ने साल 1990 में इलाहाबाद हाईकोर्ट जाकर मुकदमा दायर कर दिया। फिर साल 2000 में जब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश से भिन्न हो गया, तो इस केस को नैनीताल में एचसी को ट्रांसफर कर दिया गया। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 55 साल की उम्र में जाकर जेरॉल्ड जॉन को अब न्याय मिला। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने दिसंबर 2020 में जेरॉल्ड जॉन के पक्ष में फैसला सुनाया।
80 लाख रुपए का मुआवजा मिला
अदालत ने जेराल्ड जॉन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उनको विद्यालय में पोस्टिंग भी दी और साथ ही मुआवजे के तौर पर 80 लाख देने का आदेश भी दिया। अगर हम हाल ही की रिपोर्ट के मुताबिक देखें तो कुछ महीने पहले ही उत्तराखंड सरकार ने जेराल्ड जॉन को मुआवजे की रकम में 73 लाख रूपए का भुगतान कर दिया गया है और बाकी 7 लाख का भुगतान उत्तर प्रदेश सरकार करेगी। सबसे वरिष्ठ शिक्षक के पद पर जेराल्ड जॉन अब विद्यालय में कार्यरत हैं। अतः वह एजुकेशनल डिपार्टमेंट के कार्यवाहक प्राचार्य भी बन चुके हैं। इतने लंबे संघर्ष के बाद आखिर में जेराल्ड जॉन को अपना हक मिल ही गया।