वरुथिनी एकादशी व्रत से मिट जाते हैं पाप और कष्ट, जानिए तिथि, मुहूर्त, व्रत विधि और कथा
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत का बहुत महत्व माना गया है। आपको बता दें कि वैशाख मास कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से लोग जानते हैं। यह तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी को अति प्रिय है। इस दिन एकादशी का व्रत किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति वरुथिनी एकादशी का व्रत का पालन विधि विधान पूर्वक करता है तो उसे वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति वरुथिनी एकादशी का व्रत करता है उसके समस्त प्रकार के पाप और कष्ट मिट जाते हैं। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से वरुथिनी एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और कथा के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
इस दिन है वरुथिनी एकादशी का व्रत
साल 2021 में वरुथिनी एकादशी का व्रत 7 मई दिन शुक्रवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु जी की विधि-विधान पूर्वक पूजा की जाती है। एकादशी तिथि विष्णु जी की पूजा का विशेष दिन माना गया है।
जानिए वरुथिनी एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ- 06 मई 2021 को दोपहर 02:10 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त- 07 मई 2021 को शाम 03:32 बजे तक
द्वादशी तिथि समाप्त- 08 भी को शाम 05:35 बजे पर
एकादशी व्रत पारण समय- 08 मई को प्रातः 05:5 बजे से लेकर सुबह 08:16 बजे तक
पारण की कुल अवधि- 2 घंटे 41 मिनट
जानिए वरुथिनी एकादशी पूजन विधि
1- जो लोग वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत कर रहे हैं उनको सुबह प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होने के पश्चात घर के मंदिर में दीपक जलाना होगा।
2. भगवान विष्णु जी की प्रतिमा को स्नान करवाएं और उन्हें साफ-सुथरे धुले हुए वस्त्र पहनाएं।
3. अब आप भगवान विष्णु जी की विधि विधान पूर्वक पूजा कीजिए, भगवान की आरती कीजिए।
4. वरुथिनी एकादशी वाले दिन भगवान विष्णु जी को भोग लगाना न भूलें।
5. द्वादशी तिथि के दिन व्रत खोल सकते हैं।
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
वरुथिनी एकादशी तिथि बहुत ही विशेष बताई जाती है। इस दिन विधि-विधान पूर्वक व्रत करके भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। वरुथिनी एकादशी व्रत के पीछे कथा बताई जाती है। कथा अनुसार, नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज करता था। राजा की रूचि हमेशा धार्मिक कार्यों में अधिक रहती थी। पूजा-पाठ में राजा हमेशा ही लीन रहा करता था। एक बार राजा जंगल में तपस्या में लीन था। तभी एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। इस घटना की वजह से राजा बिल्कुल भी भयभीत नहीं हुआ और भालू राजा के पैर को चबाते हुए घसीट कर ले जाने लगा था। तब राजा मान्धाता ने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु जी से प्रार्थना की। भगवान विष्णु जी राजा की पुकार सुनकर प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से भालू को मार दिया था।
भगवान विष्णु जी ने भालू को तो मार दिया परंतु राजा का पैर भालू खा चुका था, जिसकी वजह से राजा बहुत ज्यादा परेशान हो गया था। भगवान विष्णु जी ने जब अपने भक्त को दुखी देखा तो वह बोले- हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुनः सुदृढ़ अंगो वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था। राजा ने भगवान की आज्ञा मानकर वह मथुरा चले गए और वहां पर श्रद्धा पूर्वक राजा ने व्रत किया। व्रत के प्रभाव से राजा सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया था।