जब मुगल शासक की पौत्र वधु ने जताया लाल किले पर अपना अधिकार, कोर्ट ने कहा- 150 साल बाद तुम्हे अब याद आई?
लाल किले के बारे में तो आप सब ने सुना ही होगा और यह भी आप सब लोग जानते ही होंगे कि लाल किला राष्ट्रीय संपत्ति है. लेकिन क्या आप सब लोग यह जानते हैं कि लाल किले पर भी किसी ने अपने अधिकार जमाए हैं? अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको अपने इस पोस्ट के जरिए इस बात की जानकारी देने जा रहे हैं. बता दे राष्ट्रीय इमारत लाल किले पर अपना हक जताने वाली और कोई नहीं बल्कि आखिरी मुगल सम्राट शाह जफर के पोते की पत्नी सुल्ताना बेगम है. दरअसल सुल्ताना बेगम ने दिल्ली हाई कोर्ट में लाल किला को अपने पूर्वजों की इमारत बताते हुए एक अर्जी दाखिल की थी. लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बात को सामने रखते हुए की अर्जी दाखिल करने में इतनी देरी क्यों हुई अर्जी पर बिना विचार किए ही उस को खारिज कर दिया.
हाई कोर्ट का कहना है कि जब सुल्ताना बेगम के पूर्वजों ने लाल किले पर उनके अधिकार को लेकर कुछ नहीं किया तो अब इसमें अदालत उनकी क्या मदद कर सकती है. याचिका दर्ज करने में इतना समय क्यों लगा इस बात का स्पष्टीकरण सुल्ताना बेगम के पास नहीं था. जानकारी के लिए बता दें सुल्ताना बेगम और कोई नहीं बल्कि आखिरी मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर- II के पोते मिर्जा मोहम्मद वेदर बख्त की बेगम है बता दे 22 मई सन 1980 में सुल्ताना के पति बख्त इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहकर चले गए थे.
सुल्ताना बेगम द्वारा लाल किले के अधिकार के लिए की गई याचिका उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर कार्यरत रेखा पल्ली के सामने सूचीबद्ध की गई थी. न्यायाधीश पल्ली ने याचिका करने में हुई काफी देरी के हिसाब से इस याचिका को खारिज कर दिया. इस याचिका को लेके न्यायमूर्ति पल्ली का कहना था कि वैसे तो मेरा इतिहास काफी ज्यादा कमजोर है लेकिन अगर आप की याचिका को ध्यान से देखा जाए तो उसमें आपने लिखा है की साल 1857 में ब्रिटिश शासकों द्वारा आपके साथ अन्याय किया गया. लेकिन मुझे इतना बताइए कि आपको लाल किले पर अपना अधिकार का दावा करने में डेढ़ सौ साल का समय कैसे लग गया. इतने वर्षों तक आप क्या करने में लगी हुई थी.
जानकारी के लिए बता दे सुल्ताना बेगम द्वारा अपनी याचिका में कहा गया था कि सन 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने ढाई सौ एकड़ उनके पूर्वजों द्वारा बनाए गए लाल किले पर जबरन कब्जा कर लिया गया. और वही ब्रिटिश शासकों ने उनके दादा ससुर यानी कि मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को हुमायूं के मकबरे से गिरफ्तार करने के बाद रंगून भेज दिया था. इसी दौरान सन 1872 में जफर इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए. 100 साल गुजर जाने के बाद भी आम भारतीयों को बहादुर शाह जफर की कबर का कोई पता नहीं लगा. लेकिन काफी छानबीन के बाद हुमायूं के निधन के लगभग 130 साल बाद इस बात का पता लगाया गया कि हुमायूं जफर को रंगून में कहां दफनाया गया था.
जानकारी के लिए बता दें इसकी लाल किले का निर्माण मुगल सम्राट हुमायूं द्वारा यमुना नदी के किनारे पर 1648 से 16 58 के बीच पूरा करवाया गया था. उस जमाने में जब यमुना नदी धार लेती थी तो इस लाल किले को चारों तरफ से घेर लेती थी. वही इस लाल किले के अंदर छठे बादशाह औरंगजेब ने संगमरमर से एक छोटी सुंदर कलात्मक मोती मस्जिद का निर्माण करवाया था. लेकिन सन 1857 में मुगल शासकों ने लाल किले पर जबरन कब्जा करके साईं परिवार को कोलकाता भेज दिया. इस लाल किले में जमकर लूटपाट हुई और यहां पर ब्रिटिश शासकों ने अपने झंडे लहराकर लाल किले पर कब्जा कर लिया. जिसके बाद भारत आजाद होने के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस लाल किले पर तिरंगा फैलाकर इसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया गया.